Tuesday, April 4, 2017

गीत

वंदे मातरम्!मित्रो!आज एक गीत समर्पित हैं।स्नेह सादर अपेक्षित है।

तुमने किसकी सुनी आजतक,तेरी कौन सुनेगा?
खोदी है खाई जो तुमने, बोलो कौन भरेगा?

जैसी करनी वैसी भरनी,
किया कभी एहसास नहीं।
परिवर्तन के अटल सत्य में,
है तेरा विश्वास नहीं।
सूखा,बाढ़ का चक्र सदा ही,
धरती पर चलता रहता।
फिर भी मानव सृजन शक्ति से,
जीवन को गढ़ता रहता।
लेकिन जो अपकर्म करे,कुत्ते की मौत मरेगा।
खोदी है खाई जो तुमने, बोलो कौन भरेगा?

सूरज चाँद सितारे तम में,
तुमको राह दिखाये।
फिर भी तेरी आँखों में,
तम ही तम क्यों हैं छाये।
तुम गुलाल की जगह सदा ही,
कीचड़ रोज उछाले।
पूज्य प्रेम की जगह हृदय में,
घृणा नित्य ही पाले।
बोया विष की बेल अगर खुद,बोलो कौन चरेगा?
खोदी है खाई जो तुमने,बोलो कौन भरेगा?

स्वार्थपूर्ति की बलिवेदी पर,
किसको नहीं चढ़ाये।
तुमने अपने रिश्तों को भी,
नोच नोच कर खाये।
तेरी खातिर मात्र खेल है,
जीवन की सब बातें,
जज्बातों से खेल खेलकर,
अपना मन बहलाते।
दर्द के बदले दर्द मिला तो,बोलो कौन हरेगा?
खोदी है खाई जो तुमने,बोलो कौन भरेगा?

डॉ मनोज कुमार सिंह

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