वंदे मातरम्!मित्रो!एक गज़ल हाजिर है।स्नेह सादर अपेक्षित है।
स्वार्थ डाल पर अटक गए कुछ।
लक्ष्य पूर्ति में लटक गए कुछ।
पैसों की काली ताकत से,
सुविधाओं में भटक गए कुछ।
रिश्तों में विश्वास घटे तो,
कांच सरीखे चटक गए कुछ।
मेहनत मजदूरी के हिस्से,
बैठे ठाले गटक गए कुछ।
जिन्हें दिखाया सच का दर्पण,
उन आँखों में खटक गए कुछ।
पहले सर आँखों पर रख फिर,
अरमानों को पटक गए कुछ।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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