Tuesday, April 4, 2017

गज़ल

वंदे मातरम्!मित्रो!एक गज़ल हाज़िर है।

पूर्वाग्रह, पाले बैठे हैं।
ले छूरी ,भाले बैठे हैं।

जिससे भी ,सच बोला तो वे,
फुला आज ,गालें बैठे हैं।

कुछ तो अपनी, सोच पे भारी,
डाल सात ,ताले बैठे हैं।

हंस बने ,कुर्सी पर ऐंठे,
कुछ कौए ,काले बैठे हैं।

बहुत भेड़िये,इंसानों का,
ओढ़ यहाँ ,खालें बैठे हैं।

गिद्ध सियासी,जन मुर्दों पर,
सूक्ष्म दृष्टि,डाले बैठे हैं।

घोटालों से, घिरे विदेशी,
बहनोई ,साले बैठे हैं।

कब तक भारत,भव्य बनेगा?
सपने हम ,पाले बैठे हैं।

रामलला की, हालत देखो,
तीरपालें ,डाले बैठे हैं।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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