Tuesday, April 4, 2017

गज़ल

वंदे मातरम्!मित्रो!आज एक ताज़ा गज़ल हाजिर है।

इस तरह पागल कर दिया मुझको।
नींद से बेदखल कर दिया मुझको।

मैं दरिया शांत था,पत्थर चलाकर,
बेवजह हलचल कर दिया मुझको।

जख्म ने आँसुओं को भड़का कर,
बरसता बादल कर दिया मुझको।

कड़कती धूप की,चुनौती ने,
झूमता पीपल कर दिया मुझको।

चकित हूँ आज तक,उसकी छुवन ने,
पत्थर से मखमल कर दिया मुझको।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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