वंदे मातरम्!
सुकमा के कायराना हमले के संदर्भ में मेरा एक आलेख प्रस्तुत है।
मित्रो!हम सभी अपने जीवन मे महाभारत का एक श्लोक अधूरा पढ़ते पढ़ाते आ रहे हैं।
"अहिंसा परमो धर्मः"
जबकि पूर्ण श्लोक इस तरह से है।
"अहिंसा परमो धर्मः,
धर्महिंसा तदैव च: l
अर्थात - अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है
और धर्म (कानून)की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है..
मित्रो!जब तक अधूरा पाठ किया जाएगा,तब तक व्यक्ति हो या राष्ट्र दोनों को नुकसान उठाना ही पड़ेगा।इसलिए राष्ट्रघाती वामपंथी उग्रवादी नक्सलियों और आतंकियों का सम्पूर्ण समूल विनाश के वगैर पाठ पूरा नही हो पायेगा।इतना ही नहीं अगर कोई व्यक्ति इन नक्सलियों से आप के वाल पर सहानुभूति दिखाता है या उनकी वकालत करता हुआ दिखता है तो उसका सामूहिक कठोर शब्दों से मान मर्दन कीजिये।ये वहीं स्लीपर सेल के वामपंथी कीड़े हैं जो नक्सलियों और आतंकियों का खुला समर्थन करते है और जवानों की मौत पर जश्न मनाते हैं।
ये वामपंथी दुष्प्रचार करने में जुटे हैं कि जो भाजपा का समर्थक नहीं है उसे देशद्रोही समझा जाता है। भाड़ में जाये भाजपा या देश की अन्य पार्टियां जो भी भारत के सम्मान को चोट पहुंचाएगा उसका अवश्य प्रतिकार किया जाएगा।चूंकि भाजपा राष्ट्रीयता को जिंदा रखने के लिए काम करती है इसलिए उसका समर्थन जायज भी है,लेकिन जो पार्टियां सीधे राष्ट्रद्रोही भाषा बोलती हैं उनका समर्थन कैसे किया जा सकता है।26 सैनिकों की शहादत के बाद पूरी दुनिया के सामने सचिन का जन्मदिन मनाया गया ,आईपीएल खेला गया,क्या सैनिकों के समर्थन में जन्मदिन और आईपीएल एक दिन के लिए रोका नही जा सकता था?देश को एक सही संदेश जा सकता था।लेकिन उनके एजेंडे में ये सब हाशिये की चीजें हैं।इतना ही उनका राष्ट्रभाव है।
जमा है रंग आईपीएल का,बेफिक्र भारत है,
उजाले चौको छक्कों के,अंधेरे में शहादत है।।
तथाकथित सेकुलरों ने क्या इस घटना पर अपना क्षोभ प्रकट किया?नहीं किया।
आज वामपंथियों की प्राथमिकता में गरीब और मजदूर न रह कर, केवल खेमें रह गए हैं, जैसे अल्पसंख्यक, आदिवासी, पिछड़े या अनुसूचित...
उन्हें अल्पसंख्यक, आदिवासी, पिछड़े और अनुसूचित जातियों के धनी व सशक्त लोग स्वीकार हैं, किंतु सवर्ण जातियों के गरीब, कदापि नहीं..
इस देश को अपनी टुच्ची स्वार्थ पूर्ति में खेमों में बाँट कर रख दिया है इन झंडू-वामपंथियों ने!
वामपंथी विचारधारा का एक पाखण्ड यह भी है कि इसके नीति-नियंता निजी जीवन में तो आकंठ भोग-विलास में डूबे रहते हैं और सार्वजनिक जीवन में शुचिता और त्याग की लफ़्फ़ाज़ी करते नज़र आते हैं। पंचसितारा सुविधाओं से लैस वातानुकूलित कक्षों में बर्फ और सोडे के साथ रंगीन पेय से गला तर करते हुए देश-विदेश का तख्ता-पलट करने का दंभ भरने वाले इन नकली क्रांतिकारियों की वास्तविकता सुई चुभे गुब्बारे जैसी है। ये सामान्य-सा वैचारिक प्रतिरोध नहीं झेल सकते, इसलिए हिंसा का सुरक्षा-कवच तैयार रखते है।
ये अपने तथाकथित वामपंथी साहित्य में मजदूरों के प्रति नकली सहानुभूति जरूर दिखाते हैं,लेकिन असली जीवन में मेहनतकश लोगों के पसीने से इन्हें बू आती है, उनके साथ खड़े होकर उनकी भाषा में बात करना इन्हें पिछड़ापन लगता है। येन-केन-प्रकारेण सत्ता से चिपककर सुविधाएँ लपक लेने की लोलुप मनोवृत्ति ने इनकी रही-सही धार भी कुंद कर दी है। वर्ग-विहीन समाज की स्थापना एक यूटोपिया है, जिसके आसान शिकार भोले-भाले युवा बनते हैं, जो जीवन की वास्तविकताओं से अनभिज्ञ होते हैं।आज ऐसे ही युवा नक्सली बनकर देश के साथ गद्दारी कर रहे हैं।हिडिमा इन्हीं वामपंथियों के घृणित मानसिकता की उपज है जिस पर 25 लाख का इनाम भी सरकार ने रखा है।
अंत मे यहीं कहना है कि जब तक माओ के मानस पुत्रों को ठिकाने नहीं लगाया जाएगा,देश को दर्द झेलते रहना पड़ेगा।अब हमें राम के उस सूत्र को आचरण में लाना होगा-
विनय न मानत जलधि जड़,गए तीन दिन बीत।
बोले तब सकोप प्रभु,भय बिनु होय न प्रीत।।
प्रधानमंत्री जी!जब हम पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर सकते हैं तो देश के भीतर छिपे इन देश के गद्दारों पर क्यों नहीं?अगर मन मे दृढ़ संकल्पशक्ति है तो कुछ भी संभव है।आतंकवाद और नक्सल हिंसा पर जीरो टॉलरेंस की जब आप बात करते हैं तो कुछ विश्वास जगता है और हमें विश्वास भी है कि आप 26 जवानों की शहादत को बेकार नही जाने देंगे।अगर पाकिस्तान का सर्जिकल स्ट्राइक आत्मगौरव की बात है तो ये नक्सली हमले हमारे लिए चुनौती की बात है।इससे सख्ती से निपटना राष्ट्र धर्म है।
न हमें भाषण चाहिए,न किसी की कोई गवाही चाहिए।
इन पागल कुत्तों पर,बस मौत की कार्यवाही चाहिए।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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