वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित कर रहा हूँ।आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।
तेरा सुख तुझमें ही बैठा,
मन की तहकीकात करो।
सदा रोशनी की भाषा में,
अँधियारों से बात करो।
सतत् सुखी रहने का केवल,
एक मन्त्र ही है काफी,
अपनी ईर्ष्या, कुंठाओं पर,
प्रतिपल तुम प्रतिघात करो।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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