वंदे मातरम्!मित्रो! कुछ दोहे हाजिर हैं।
माया सत्ता स्वार्थ के,समझ चुके सब खोट।
तिलक,तराजू,तेग मिल,मारेंगे अब चोट।।
जनता के अरमान के,गर्दन दिए मरोड़।
पत्थर के हाथी बना,लूटे शतक करोड़।।
कहती है खुद को दलित,रहती ब्राह्मण साथ।
शोषित वंचित को सदा,करती रही अनाथ।।
कुर्सी पाने की जुगत,जातिवाद की रीति।
माया ने अपना लिया,दलित कार्ड की नीति।।
गुंडों के बल चाहती,कुर्सी,सत्ता,ताज।
इसीलिये अपना लिया,अंसारी को आज।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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