वंदे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक हाजिर है,जो कश्मीर (जिसे धरा का स्वर्ग कहा गया) की स्थिति पर आधारित है।
हूर के ख्वाब झूठे दिखाते रहे।
हुस्ने-जन्नत को दोज़ख बनाते रहे।
हिन्द की रोटियों पर जो पलते मगर,
फिर भी ना'पाक' के गीत गाते रहे।
(शब्दार्थ-हूर-अप्सरा, हुस्ने-जन्नत-स्वर्ग का सौंदर्य, दोजख-नर्क)
डॉ मनोज कुमार सिंह
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