वंदे मातरम्!मित्रो!एक गजल हाजिर है।
गजल
उपवन में सन्नाटा क्यों?
फूल से ज्यादा काँटा क्यों?
हिन्दू-मुस्लिम टुकड़ों में,
बोलो हमको बाँटा क्यों?
राजनीति की नीयत में,
महज लाभ औ घाटा क्यों?
मुफ़लिस की हर थाली में,
इतना गीला आटा क्यों?
नेताओं की बल्ले बल्ले,
जन के मुख पर चाँटा क्यों?
बिन दौड़ाए गधा पास,
रेस का घोडा छाँटा क्यों?
डॉ मनोज कुमार सिंह
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