Tuesday, April 4, 2017

दो मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज चनावों में नीतियों की,गरीबी मिटाने की,भ्रष्टाचार ख़त्म करने की,प्रशासनिक सुधार की,पुलिस सुधार की बात करने के बजाय तेल,घी और मुफ्तखोरी की घोषणा करना कितना जायज है भाई?और ये अधिकांश लोभी,लालची जनता अपना जमीर बेचकर इन जातिवादियों और तुष्टिकरण के पाठ पढ़ाने वालों के चंगुल में ही रहकर खुश रहती है।फिर भी कहूँगा जागो जनता जागो!दो मुक्तक हाजिर हैं।

                           1
आज सियासी बदचलनी का,अद्भुत अवसर लगता है।
जनता को ठगने का मौसम,निश्चित बेहतर लगता है।
जहाँ मुफ्तखोरी का केवल,पाठ पढ़ाया जाता है,
अकर्मण्यता के कीड़ो को,कीचड़ ही घर लगता है।।

                             2
भैंस की फितरतों को कौन सुधारेगा आखिर,
बैठ कीचड़ में सदा,लोटती पगुराती हैं।
जैसे बरसात में ,औकात पर आती हैं जब भी,
नालियाँ सिर्फ और ,सिर्फ बजबजाती हैं।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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