वंदे मातरम्!मित्रो!एक गज़ल हाजिर है।
हमे बस आजमाना,चाहते हो?
या रिश्ते भी निभाना,चाहते हो?
ये कैसी मेजबानी है,तुम्हारी,
बुलाकर,भाग जाना,चाहते हो?
मेरी हर बात पर,प्रतिरोध तेरा,
न जाने क्या दिखाना,चाहते हो?
नहीं तुम चाहते ,सुनना किसी की,
महज़ अपनी सुनाना,चाहते हो।
जला तू बिजलियाँ,दिन-रात लेकिन,
क्यूँ घर मेरा जलाना,चाहते हो?
डॉ मनोज कुमार सिंह
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