वंदे मातरम्!मित्रो!एक ताजा गज़ल हाजिर है।
पहले आया था मुझसे,वह प्यार जताने।
जाने क्या फिर हुआ,लगा इल्जाम लगाने।
बहुत मजे में रहा,बहुत दिन जिस घर में वह,
आज उसीको आग,लगाकर लगा जलाने।
ले फरियाद गया था,जिनके दर तक अपनी,
मेरी क्या सुनता,अपनी खुद लगा सुनाने।
मकड़ों की फितरत है,केवल जाल बिछाना,
जाने कैसे मधु पर,हक वे लगे जताने।
पता नहीं चल पाता,नागों का उपवन में,
वो तो कहिए,लगे परिंदे शोर मचाने।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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