Thursday, April 27, 2017

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो!MCD चुनाव पर एक हास्य मुक्तक हाजिर है।

ईवीएम पर आरोप-

ईवीएम तुमने फिर से,क्यो कर दी अपनी मनमर्जी।
जिता दिया फिर बीजेपी को,वोट दिलाकर फर्जी।
ईंट से ईंट बजाकर छोड़ेंगे,दिल्ली में निश्चित,
अब तो तुम पर केस करेंगे,कल ही केजरी सर जी।।

ईवीएम ने जवाब में कहा-
देखिए कवि जी!मैं गद्य में समझाता हूँ।ये सड़ जी हैं न। ये अदरक की गांठ हैं ।इनको वक़्त पे न कूटा जाता,तो...तो ये सोंठ बन जाते।सो जनता ने मेरा अच्छा उपयोग किया और मैंने सही सही निर्णय दिया।

डॉ मनोज कुमार सिंह

सुकमा पर आलेख

वंदे मातरम्!
सुकमा के कायराना हमले के संदर्भ में मेरा एक आलेख प्रस्तुत है।
मित्रो!हम सभी अपने जीवन मे महाभारत का एक श्लोक अधूरा पढ़ते पढ़ाते आ रहे हैं।
"अहिंसा परमो धर्मः"
जबकि पूर्ण श्लोक इस तरह से है।

"अहिंसा परमो धर्मः,
धर्महिंसा तदैव च: l

अर्थात - अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है
और धर्म (कानून)की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है..

मित्रो!जब तक अधूरा पाठ किया जाएगा,तब तक व्यक्ति हो या राष्ट्र दोनों को नुकसान उठाना ही पड़ेगा।इसलिए राष्ट्रघाती वामपंथी उग्रवादी नक्सलियों और आतंकियों का सम्पूर्ण समूल विनाश के वगैर पाठ पूरा नही हो पायेगा।इतना ही नहीं अगर कोई व्यक्ति इन नक्सलियों से आप के वाल पर सहानुभूति दिखाता है या उनकी वकालत करता हुआ दिखता है तो उसका सामूहिक कठोर शब्दों से मान मर्दन कीजिये।ये वहीं स्लीपर सेल के वामपंथी कीड़े हैं जो नक्सलियों और आतंकियों का खुला समर्थन करते है और जवानों की मौत पर जश्न मनाते हैं।
ये वामपंथी दुष्प्रचार करने में जुटे हैं कि जो भाजपा का समर्थक नहीं है उसे देशद्रोही समझा जाता है। भाड़ में जाये भाजपा या देश की अन्य पार्टियां जो भी भारत के सम्मान को चोट पहुंचाएगा उसका अवश्य प्रतिकार किया जाएगा।चूंकि भाजपा राष्ट्रीयता को जिंदा रखने के लिए काम करती है इसलिए उसका समर्थन जायज भी है,लेकिन जो पार्टियां सीधे राष्ट्रद्रोही भाषा बोलती हैं उनका समर्थन कैसे किया जा सकता है।26 सैनिकों की शहादत के बाद पूरी दुनिया के सामने सचिन का जन्मदिन मनाया गया ,आईपीएल खेला गया,क्या सैनिकों के समर्थन में जन्मदिन और आईपीएल एक दिन के लिए रोका नही जा सकता था?देश को एक सही संदेश जा सकता था।लेकिन उनके एजेंडे में ये सब हाशिये की चीजें हैं।इतना ही उनका राष्ट्रभाव है।

जमा है रंग आईपीएल का,बेफिक्र भारत है,
उजाले चौको छक्कों के,अंधेरे में शहादत है।।

तथाकथित सेकुलरों ने क्या इस घटना पर अपना क्षोभ प्रकट किया?नहीं किया।
आज वामपंथियों की प्राथमिकता में गरीब और मजदूर न रह कर, केवल खेमें रह गए हैं, जैसे अल्पसंख्यक, आदिवासी, पिछड़े या अनुसूचित...
उन्हें अल्पसंख्यक, आदिवासी, पिछड़े और अनुसूचित जातियों के धनी व सशक्त लोग स्वीकार हैं, किंतु सवर्ण जातियों के गरीब, कदापि नहीं..
इस देश को अपनी टुच्ची स्वार्थ पूर्ति में खेमों में बाँट कर रख दिया है इन झंडू-वामपंथियों ने!

वामपंथी विचारधारा का एक पाखण्ड यह भी है कि इसके नीति-नियंता निजी जीवन में तो आकंठ भोग-विलास में डूबे रहते हैं और सार्वजनिक जीवन में शुचिता और त्याग की लफ़्फ़ाज़ी करते नज़र आते हैं। पंचसितारा सुविधाओं से लैस  वातानुकूलित कक्षों में बर्फ और सोडे के साथ रंगीन पेय से गला तर करते हुए देश-विदेश का तख्ता-पलट करने का दंभ भरने वाले इन नकली क्रांतिकारियों की वास्तविकता सुई चुभे गुब्बारे जैसी है। ये सामान्य-सा वैचारिक प्रतिरोध नहीं झेल सकते, इसलिए हिंसा का सुरक्षा-कवच तैयार रखते है।
ये अपने तथाकथित वामपंथी साहित्य में मजदूरों के प्रति नकली सहानुभूति जरूर दिखाते हैं,लेकिन असली जीवन में मेहनतकश लोगों के पसीने से इन्हें बू आती है, उनके साथ खड़े होकर उनकी भाषा में बात करना इन्हें पिछड़ापन लगता है। येन-केन-प्रकारेण सत्ता से चिपककर सुविधाएँ लपक लेने की लोलुप मनोवृत्ति ने इनकी रही-सही धार भी कुंद कर दी है। वर्ग-विहीन समाज की स्थापना एक यूटोपिया है, जिसके आसान शिकार भोले-भाले युवा बनते हैं, जो जीवन की वास्तविकताओं से अनभिज्ञ होते हैं।आज ऐसे ही युवा नक्सली बनकर देश के साथ गद्दारी कर रहे हैं।हिडिमा इन्हीं वामपंथियों के घृणित मानसिकता की उपज है जिस पर 25 लाख का इनाम भी सरकार ने रखा है।

अंत मे यहीं कहना है कि जब तक माओ के मानस पुत्रों को ठिकाने नहीं लगाया जाएगा,देश को दर्द झेलते रहना पड़ेगा।अब हमें राम के उस सूत्र को आचरण में लाना होगा-
विनय न मानत जलधि जड़,गए तीन दिन बीत।
बोले तब सकोप प्रभु,भय बिनु होय न प्रीत।।

प्रधानमंत्री जी!जब हम पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर सकते हैं तो देश के भीतर छिपे इन देश के गद्दारों पर क्यों नहीं?अगर मन मे दृढ़ संकल्पशक्ति है तो कुछ भी संभव है।आतंकवाद और नक्सल हिंसा पर जीरो टॉलरेंस की जब आप बात करते हैं तो कुछ विश्वास जगता है और हमें विश्वास भी है कि आप 26 जवानों की शहादत को बेकार नही जाने देंगे।अगर पाकिस्तान का सर्जिकल स्ट्राइक आत्मगौरव की बात है तो ये नक्सली हमले हमारे लिए चुनौती की बात है।इससे सख्ती से निपटना राष्ट्र धर्म है।
न हमें भाषण चाहिए,न किसी की कोई गवाही चाहिए।
इन पागल कुत्तों पर,बस मौत की कार्यवाही चाहिए।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदे मातरम!मित्रो! आज सुकमा की घटना पर भारतीयों का आक्रोश एक मुक्तक के रूप में प्रस्तुत किया हूँ।आपका समर्थन सादर अपेक्षित है।

उदार बनकर नक्सलियों को, घर में यूं मत पालो।
राजनाथ जी मर्द अगर हो,मोर्चा खुद सम्हालो।
तीनों सेनाओं को भेजो, छूट जवानों को देकर
नक्सल के इन कुत्तों के,सौ दो सौ गर्दन कटवालो।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

बाबूजी के एगो चिकन मजाक

सगरी मित्र लोगन के राम राम!आजु हमरा बाबूजी के लिखल एगो देवर भउजाई के चिकन मजाक 'बकलोल के बकवास' से हाजिर बा।

भउजी-

कहली भउजी कि ए बबुआ तहरा नीयर,
केतने गदहन के तिगनी नचा दिहनी हम।
देखि ल हमरा चप्पल के तल्ला लला,
केतने छैलन के चानुल बना दिहनी हम।

देवर-

नैन करि टेढ़ झुकि चप्पल देखवले होईबू,
बात तू कहेलू भउजी साँची साँची।
खच्चर के पोंछ नीयर जूड़ा के देखि तोहार,
गदहे नू नाची कि घोड़ा नाची।।

रचनाकार-अनिरुद्ध सिंह 'बकलोल'
ग्राम+पोस्ट- आदमपुर
थाना-रघुनाथपुर
जिला-सीवान,(बिहार)

गज़ल

वंदे मातरम्!मित्रो!एक ताजा गज़ल हाजिर है।

पहले आया था मुझसे,वह प्यार जताने।
जाने क्या फिर हुआ,लगा इल्जाम लगाने।

बहुत मजे में रहा,बहुत दिन जिस घर में वह,
आज उसीको आग,लगाकर लगा जलाने।

ले फरियाद गया था,जिनके दर तक अपनी,
मेरी क्या सुनता,अपनी खुद लगा सुनाने।

मकड़ों की फितरत है,केवल जाल बिछाना,
जाने कैसे मधु पर,हक वे लगे जताने।

पता नहीं चल पाता,नागों का उपवन में,
वो तो कहिए,लगे परिंदे शोर मचाने।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गज़ल

वंदे मातरम्!मित्रो!एक ताजा गजल हाजिर है।

चलकर देखना,बेहतर सफर है।
दिल के भीतर भी इक,अद्भुत शहर है।

कहाँ सुख ढूढ़ने,जाते हो बाहर,
भरा तुझमें ही जब,खुशियों का घर है।

नदी को चूम लेती,जब हवाएँ,
उमंगों से उमगती,हर लहर है।

पखेरु मन भटकता,जा रहा है,
न जाने किस दिशा में,अग्रसर है।

गुनाहों को छिपा लो,लाख लेकिन,
खुदा हर साँस पर,रखता नजर है।

भला क्या खाक,समझेगा जहां को,
जो खुद की जिंदगी से,बेखबर है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वंदे मातरम्!मित्रो!एक समसामयिक कुण्डलिया हाजिर है।

सुन!..चुनाव आयोग ने,किया खुला चैलेंज।
इवीएम पर केजरी,....होना मत फिर चेंज।
मत होना फिर चेंज,हैक करके दिखलाओ।
महज सियासी दांव,...गंदगी मत फैलाओ।
देख तेरा स्वभाव,लजाए अब तो अवगुन।
पक जाते हैं कान,केजरी जुमले सुन सुन।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो!देश के एकमात्र ईमानदार नेता (?)सर जी को समर्पित मेरा एक मुक्तक।

क्या मालूम था गबन,घोटाला होगा उनकी थाली में।
इतना महँगा भव्य निवाला होगा उनकी थाली में।
आम आदमी के सपनों को,जैसे कुचल रहे सर जी,
कुछ न कुछ तो दाल में काला होगा उनकी थाली में??

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहे मनोज के

वंदे मातरम्!मित्रो!मेरे सात सामयिक खुरदुरे दोहे हाजिर हैं।आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

सुनियोजित षड्यंत्र का,अद्भुत है ये खेल।
पुरस्कार अब हो गया,मालिश वाला तेल।।

सबके अपने मंच हैं,और सबके प्रपंच।
पुरस्कार बँटने लगे,जैसे मिड डे लंच।।

कथा,कहानी,काव्य के,खतरे में आदित्य।
निगल रहे निशदिन यहाँ,नफरत के साहित्य।।

जिस कविता में है नही,जीवन का सुख शोध।
उसमें मिलता है सदा,नफरत औ प्रतिशोध।।

कुछ माओ औ लेनिन के ,संग मार्क्स औलाद।
सदा वर्ग संघर्ष से, करे देश बर्बाद।।

जितना जो नाटक करे,निशदिन आत्मप्रचार।
हाथो हाथ ले लेता,अर्थध्येय बाजार।।

बिकने वाली चीज पर,लट्टू है बाजार।
चाहे सरस सलिल हो,या स्वारथ का प्यार।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी मुक्तक

राम राम मित्र लोगन के!भोजपुरिया समाज के एगो चित्र मुक्तक में हाजिर बा।

आई सभे काटाकुटी कइल जाव।
आपस मे कुछ लातालुती कइल जाव।
हथियार के का जरूरत बा अलगा से,
मुड़िया के डेबाडेबी कइल जाव।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी मुक्तक

राम राम मित्र लोगन के!एगो मुक्तक हाजिर बा।

दू अच्छर लिख के उ रोज,कुछ अईसन जतावेलें।
कि जइसे भोजपुरी के,उहे गरिमा बचावेलें।
अगर जो टोक देला जब केहू, बात पर उनका,
कुतर्की ज्ञान के आपन उ, बस कुक्कुर लड़ावेलें।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Friday, April 7, 2017

आह्वान गीत


नित्य जड़ विचार पर,प्रबल प्रखर प्रहार कर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।
                   1
विचर विचार व्योम में,
प्रचंड वेग तुल्य तू।
सिद्ध कर अनंत के,
अनादि सर्व मूल्य तू।
अखंड दिव्य ज्योति से,
मन मणि धवल करो।
धरा तमस से मुक्त हो,
नित नवल पहल करो।
पतझरों की शुष्कता में,स्नेह भर बहार कर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।
                       2
घर नगर प्रदेश में ,
या कहीं भी देश में।
मनुष्यता मिटे नहीं,
रहो किसी भी वेश में।
ब्रह्माण्ड सा बनो कि तुममें,
हों अनेक भूमियाँ।
विराट भव्य भाव से,
रचो नवीन सृष्टियाँ।
प्रणय पुनीत नींव में,घृणा की मत दीवार भर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।
                          3
फैलो सुरभि-से इस तरह,
महक उठे दिशा दिशा।
बरस कि शुष्क पुष्प की,
हरी हो उसकी हर शिरा।
मधुर सरस गुंजार से,
खिला चमन की हर कली।
पलक पर स्वप्न पालकर,
चखो तू प्रेम की डली।
सदा हृदय आकाश में,तू मेघ बन विहार कर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Thursday, April 6, 2017

गज़ल

वंदे मातरम्! मित्रो!आज एक ताजा गज़ल हाज़िर है।आप सभी का स्नेह टिप्पणी के रूप में सादर अपेक्षित है।

दर्द की दाहक,कथाओं सी लगी।
जिंदगी बेबस,विथाओं सी लगी।

दिल मे इक,बहती हुई गूंगी नदी,
अनकही ,संवेदनाओं सी लगी।

बात कितनी भी कहूँ,अच्छी मगर,
उनकी नजरों में,खताओं सी लगी।

झूठ की बेशर्म सी,मुस्कान उनकी,
महज़ वेश्या की,अदाओं सी लगी।

वक्त की साजिश है,या किस्मत मिरी,
आजकल अंधी,गुफाओं सी लगी।

घृणा के आकाश में,हर सोच उनकी,
मुझको तेज़ाबी,घटाओं सी लगी।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वंदे मातरम्! मित्रो!एक समसामयिक कुण्डलिया हाजिर है।

मिट्टी घोटाला हुआ,फिर बिहार में आज।
तेजू में दिखने लगा,लालू का अंदाज।
लालू का अंदाज,मिला सही डी एन ए।
अपराधों में लिया ,आज वह डिग्री एम ए।
शुरू हुआ अध्याय,बिहार का फिर से काला।
अब चारा परिवार,करे मिट्टी घोटाला।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Tuesday, April 4, 2017

गज़ल

वंदे मातरम्!मित्रो!आज एक ताज़ा गज़ल हाजिर है।

इस तरह पागल कर दिया मुझको।
नींद से बेदखल कर दिया मुझको।

मैं दरिया शांत था,पत्थर चलाकर,
बेवजह हलचल कर दिया मुझको।

जख्म ने आँसुओं को भड़का कर,
बरसता बादल कर दिया मुझको।

कड़कती धूप की,चुनौती ने,
झूमता पीपल कर दिया मुझको।

चकित हूँ आज तक,उसकी छुवन ने,
पत्थर से मखमल कर दिया मुझको।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गज़ल

वंदे मातरम्!मित्रो!एक गज़ल हाजिर है।

हमे बस आजमाना,चाहते हो?
या रिश्ते भी निभाना,चाहते हो?

ये कैसी मेजबानी है,तुम्हारी,
बुलाकर,भाग जाना,चाहते हो?

मेरी हर बात पर,प्रतिरोध तेरा,
न जाने क्या दिखाना,चाहते हो?

नहीं तुम चाहते ,सुनना किसी की,
महज़ अपनी सुनाना,चाहते हो।

जला तू बिजलियाँ,दिन-रात लेकिन,
क्यूँ घर मेरा जलाना,चाहते हो?

डॉ मनोज कुमार सिंह

गज़ल

वंदे मातरम्!मित्रो!एक गज़ल हाज़िर है।

नहीं एक भी पल देता है।
वक्त छोड़कर चल देता है।

सोचो,डूबते के हिस्से में,
तिनका कितना बल देता है।

घृणा-रज्जु से बँधा हुआ मन,
केवल कचरा ,मल देता है।

हाँफ रही धरती को पानी,
आवारा बादल देता है।

करनी का फल तय है प्यारे,
आज नहीं तो कल देता है।

सदा सब्र की झुकी डाल पर,
ईश्वर मीठा फल देता है।

इंसानों में छिपा भेड़िया,
मौका पाकर छल देता है।

वक्त निरुत्तर कर देता,पर,
थककर खुद ही हल देता है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।टिप्पणी सादर अपेक्षित है!

हम समंदर की,गहराइयों के पक्षधर हैं,
हमें हिमालय की,ऊँचाइयों से क्या लेना।
जिन्हें शौक है विवादों में,बने रहने का हर पल,
ऐसे लियोनी के,बहन-भाइयों से क्या लेना।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।आपका
स्नेह सादर अपेक्षित है।

सहनशक्ति का बुद्ध बनो,
या भगत सिंह बन जाओ।
सज्जन से सज्जनता,
शठ से शठता धर्म निभाओ।
रघुकुल का संदेश यही है,
सदियों से दुनिया को,
शास्त्र न माने अगर जलधि जड़,
शीघ्र शस्त्र अपनाओ।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गज़ल

वंदे मातरम्!मित्रो!एक गज़ल हाज़िर है।

पूर्वाग्रह, पाले बैठे हैं।
ले छूरी ,भाले बैठे हैं।

जिससे भी ,सच बोला तो वे,
फुला आज ,गालें बैठे हैं।

कुछ तो अपनी, सोच पे भारी,
डाल सात ,ताले बैठे हैं।

हंस बने ,कुर्सी पर ऐंठे,
कुछ कौए ,काले बैठे हैं।

बहुत भेड़िये,इंसानों का,
ओढ़ यहाँ ,खालें बैठे हैं।

गिद्ध सियासी,जन मुर्दों पर,
सूक्ष्म दृष्टि,डाले बैठे हैं।

घोटालों से, घिरे विदेशी,
बहनोई ,साले बैठे हैं।

कब तक भारत,भव्य बनेगा?
सपने हम ,पाले बैठे हैं।

रामलला की, हालत देखो,
तीरपालें ,डाले बैठे हैं।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा (भोजपुरी)

राम राम!एगो दोहा हाजिर बा।

देखि ताल में हंस के,खिलल कंज के फूल।
कउवन खातिर हो गइल,मौसम अब प्रतिकूल।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

(शब्दार्थ-कंज-कमल, कउवन-कौओं)

दोहा(भोजपुरी)

राम राम!एगो दोहा आजु के सन्दर्भ में।

पीछे पड़ि सब शेर के,कुक्कुर,मूस,बिलार।
भौं भौं,चूँ चूँ ,म्याउँ करि,मुतै बीच बाजार।।

राष्ट्रभक्ति गीत

वंदे मातरम्!मित्रो!आज माँ भारती के बलिदानी सपूत भगत सिंह,राजगुरु,और सुखदेव को शत-शत नमन!!
मातृभूमि के लिए बलिदानी परंपरा को समर्पित मेरी एक रचना प्रस्तुत है।

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
गजब की जवानी,गजब के दीवाने!
चले हैं बिना मूल्य गर्दन चढ़ाने।।
                  1
सतत् राष्ट्र आराधना में समर्पित।
सदा मातृभूमि की गरिमा से गर्वित।
सहज चेतना के सरलतम सिपाही,
सदा सरहदों को करें जो सुरक्षित।
करो मान सम्मान उनका हमेशा,
खड़े, दुश्मनों से, हमें जो बचाने।।
गजब की जवानी,गजब के दीवाने!
चले हैं बिना मूल्य गर्दन चढ़ाने।
                  2
पिला सबको अमृत,गरल खुद पिये जो।
सदा शिव बनकर,मनुज हित जिये जो।
खड़े बर्फ में ,घाटियों,जंगलों में,
हमारे लिए अपना जीवन दिये जो।
नमन हम करें उन शहीदों को निशदिन,
दिये जान अपनी किये बिन  बहाने।।
गजब की जवानी,गजब के दीवाने!
चले हैं बिना मूल्य गर्दन चढ़ाने।।
                   3
तिरंगा की गंगा में निशदिन नहाए।
सदा क्रांति का गीत सबको सुनाए।
लिए भावना सद् लड़े आँधियों से,
वतन की जमीं प्राण देकर बचाए।
उसी भक्ति की शक्ति से आज हम भी,
पाए है जीवन के लमहे सुहाने।।
गजब की जवानी,गजब के दीवाने!
चले हैं बिना मूल्य गर्दन चढ़ाने।

डॉ मनोज कुमार सिंह
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

कुण्डलिया

वंदे मातरम्!मित्रो!एक सम सामयिक मुक्तक हाजिर है।

ज्यों चोरों की बस्ती में,पुलिस की आहट काफी है।
वैसे ही नरसिंहों की केवल गुर्राहट काफी है।
असली सिंहो के आने की,खबर मिली जबसे यारों,
छुपे भेड़ियों के दिल में,दहशत घबराहट काफी है।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वंदे मातरम!मित्रो!आज उ.प्र.के मुख्यमंत्री के लिए योगी आदित्यनाथ जी को विधायक दल का नेता चुन लिया गया है।उन्होंने उ.प्र.के केवल विकास के लिए अपनी बात रखी है।एक कुण्डलिया के साथ योगी जी को बधाइयाँ और शुभ कामनाएँ।

संशय का तम मिट गया,आया नवल सुराज।
योगी जी को मिल गया,यूपी का अब ताज।
यूपी का अब ताज,विकास का काम करेगा।
होगा सबका साथ,जाति का भेद मिटेगा।
सुन मनोज कविराय,बनेगा यूपी निर्भय।
सबका साथ,विकास,में न अब कोई संशय।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गीत

वंदे मातरम्!मित्रो!आज एक गीत समर्पित हैं।स्नेह सादर अपेक्षित है।

तुमने किसकी सुनी आजतक,तेरी कौन सुनेगा?
खोदी है खाई जो तुमने, बोलो कौन भरेगा?

जैसी करनी वैसी भरनी,
किया कभी एहसास नहीं।
परिवर्तन के अटल सत्य में,
है तेरा विश्वास नहीं।
सूखा,बाढ़ का चक्र सदा ही,
धरती पर चलता रहता।
फिर भी मानव सृजन शक्ति से,
जीवन को गढ़ता रहता।
लेकिन जो अपकर्म करे,कुत्ते की मौत मरेगा।
खोदी है खाई जो तुमने, बोलो कौन भरेगा?

सूरज चाँद सितारे तम में,
तुमको राह दिखाये।
फिर भी तेरी आँखों में,
तम ही तम क्यों हैं छाये।
तुम गुलाल की जगह सदा ही,
कीचड़ रोज उछाले।
पूज्य प्रेम की जगह हृदय में,
घृणा नित्य ही पाले।
बोया विष की बेल अगर खुद,बोलो कौन चरेगा?
खोदी है खाई जो तुमने,बोलो कौन भरेगा?

स्वार्थपूर्ति की बलिवेदी पर,
किसको नहीं चढ़ाये।
तुमने अपने रिश्तों को भी,
नोच नोच कर खाये।
तेरी खातिर मात्र खेल है,
जीवन की सब बातें,
जज्बातों से खेल खेलकर,
अपना मन बहलाते।
दर्द के बदले दर्द मिला तो,बोलो कौन हरेगा?
खोदी है खाई जो तुमने,बोलो कौन भरेगा?

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।

यहाँ पर सत्य के क़ातिल बहुत हैं।
जश्न ए झूठ में शामिल बहुत हैं।
वे,जिसमे चाटुकारी ,वृति का अद्भुत समागम,
तख़्त की नजर में काबिल बहुत हैं।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया(भोजपुरी)

राम राम सगरी मित्र लोगन के!आज महेन्दर मिसिर के जयंती पर सब भोजपुरिया लोगन के सुभकामना आ बधाई।भोजपुरी के लोक कवि के सत सत नमन!एगो कुण्डलिया समर्पित बा।

बसल हिया में, कंठ में,जेकर पुरबी तान।
मिसिर महेन्दर जी हईं, भोजपुरी के प्रान।
भोजपुरी के प्रान,गीत संगीत पारखी।
सोना के गुरु श्रेष्ठ,क्रांति के सफल सारथी।
कहे मनोज सिंगार,परेम के रंग रसिया में।
बिरह बान के रंग,लोक के बसल हिया में।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो!एक ताजा मुक्तक हाजिर है।

विकास के आगे बबुआ की कुर्सी,...जवानी में गई।
खैरात की भैंस वाली सियासत,........पानी में गई।
ईवीएम को 'एवरीवन वोट माया',....समझती थी बुआ,
मगर 'एक्स्ट्रा वोट फ़ॉर मोदी' की,.....सुनामी में गई।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

कुण्डलिया

भाषण सुनकर भैंस की,और देखकर शक्ल।
समझ नहीं आता हमें,भैंस बड़ी या अक्ल।।
भैंस बड़ी या अक्ल,सियासत जो न कराये।
मुल्क भले हो नष्ट,मगर कुर्सी मिल जाए।
जबसे नेता बने,जातिवादी आकर्षण।
लूट रहे हैं देश,जातिगत देकर भाषण।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वंदे मातरम्!मित्रो!आज एक कुण्डलिया हाजिर है।

कुण्डलिया
.................

जय भीम औ मीम की,घिग्घी बंध गई आज।
पप्पू टीपू छिलेंगे,बैठ यहाँ अब प्याज।
बैठ यहाँ अब प्याज,केजरी घास छिलेंगे।
ममता,लालू घृणा,आग में नित्य जलेंगे।
महाविजय सन्देश,बने जन जन अब निर्भय।
करो आज हुंकार,भारती माँ की जय जय।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दो दोहे

वंदे मातरम्!मित्रो!दो दोहे हाजिर हैं।

जनता ने जता दिया,अपने मन की प्रीत।
भड़वों पर भारी पड़ी,भक्तों की ये जीत।।

जातिवाद,परिवार का,ख़त्म हो गया खेल।
अपराधी तैयार हों,जाने को अब जेल।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो!आज एक ताजा मुक्तक समर्पित कर रहा हूँ।अगर सही लगे तो आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

दलित,अगड़े व पिछड़े,नाम हैं घोषित यहाँ पर।
सियासी तौर पर अब देश,है खंडित यहाँ पर।
जाति,मजहब घृणा की,कुर्सियों की साजिश में,
एक इंसानियत ही है महज ,शोषित यहाँ पर।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी के चार गो दोहा

सगरी मित्र लोगन के राम राम!चार गो दोहा समर्पित बा।

भोजपुरी के नाम पर,झंडा आज तमाम।
खुद के जिंदाबाद बा,औरन के बदनाम।।

भोजपुर में भोजपुरी,नया कवन बा बात।
अब त एहके बोलताs,कलकत्ता-गुजरात।।

भजन भजेलें उ भले,भोजपुरी के रोज।
लउके भासा से अधिक,उनकर आपन पोज।।

भोजपुरी फुहड़ता पर,करिके कड़क प्रहार।
सुघर सही हर बात के,निसदिन करीं प्रचार।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।स्नेह सादर अपेक्षित है।

गर चाहते हैं बोलना,
खूब बोलिये ज़नाब।
मन में पड़ी हर गाँठ को,
भी खोलिए ज़नाब।
दिल की तुला पर रख के,
अपनी शब्द शक्ति को,
कहने से पहले खुद को,
ज़रा तोलिए जनाब।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो!एक कड़वा सच मुक्तक के रूप में हाजिर है।स्नेह सादर अपेक्षित है।

देश की सत्ता घरानों तक,
रहेगी कब तलक।
भय घुटन की जिंदगी,
जनता सहेगी कब तलक।
कब तलक होगी सियासत,
जाति,मजहब के तले,
इस गुलामी की नदी,
आखिर बहेगी कब तलक।।

डॉ मनोज कुमार सिंह