Saturday, July 18, 2015

गजल

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज एक ग़ज़ल आपको सादर समर्पित कर रहा हूँ। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

मुस्कराहट पर मिरे एतराज क्यूँ है।
दुश्मनों-सा आपका अंदाज क्यूँ है।

मेरे हिस्से की मिली उपलब्धियों से,
बेवज़ह मन आपका नासाज़ क्यूँ है।

कल तलक सूरज उगाते फिर रहे थे,
फिर अंधेरों से मुहब्बत आज क्यूँ है।

नीव के पत्थर मिटे हर बोझ लेकर,
फिर कंगूरों के सिरों पे ताज क्यूँ है।

खुद पे हँस कर जिंदगी में जान पाया,
नूर मेरे अक्स का बेताज क्यूँ है।

(नासाज़-बीमार, नूर-चमक, अक्स-चेहरा)

डॉ मनोज कुमार सिंह

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