वन्देमातरम् मित्रो!एक मुक्तक समर्पित कर रहा हूँ। आप अपनी बहुमूल्य टिप्पणी देकर अपने स्नेह से आप्लावित करें......
संभावना का इक शहर ,तुझमें छिपा है।
सोच का अमृत-जहर ,तुझमें छिपा है।
ढूढ़ते हो रोशनी दुनिया में क्यों तुम,
खुद तुम्हारा मुनव्वर ,तुझमें छिपा है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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