वन्दे मातरम्!मित्रो!आज अपनी प्राचीन संस्कृति की उत्कृष्ट सामाजिक वर्ण व्यवस्था पर कुछ दोहे समर्पित कर रहा हूँ,जिसे आज जाति व्यवस्था से जोड़कर विकृत किया जा रहा है। अगर मेरे ये दोहे सही लगें तो अपना स्नेह टिप्पणी के रूप में अवश्य दें-
ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य औ शूद्र शब्द प्रपन्न।
स्वाभाविक गुण,कर्म से ,वर्ण हुए उत्पन्न।।1।।
ब्रह्मा,विष्णु या कहो,चाहे मुझको रूद्र।
मैं हीं ब्राह्मण,वैश्य औ ,मैं हीं क्षत्रिय शूद्र।।2।।
क्षमाशील अंतःकरण और ब्रह्म का ज्ञान।
शम,दम औ सत् आचरण,ब्राह्मण की पहचान।।3।।
शूरवीरता,तेज औ धैर्य,चतुरता भाव।
युद्ध अडिग,दानी सदा,है क्षत्रिय स्वभाव।।4।।
खेती,गोपालन,बनिज,और सत्य व्यवहार।
यहीं वैश्य सद्कर्म है,और मूल आचार।।5।।
जो सबकी सेवा करे,सबको दे सम्मान।
स्वाभाविक गुण,कर्म यह,शूद्र वर्ण पहचान।।6।।
जाति-वर्ण में भेद है,जान सको तो जान।
मत विवाद में फँस कभी,खुद को तू पहचान।।7।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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