वन्दे भारतमातरम् !मित्रो,एक ताज़ा मुक्तक हाजिर करता हूँ। आपकी टिप्पणी हीं मेरी उर्जा है।
मन का घोड़ा मत दौड़ा तू ,हार या केवल जीत में।
अर्थवान कर खुद का जीवन,गाकर मन के गीत में ।
वीणा के तारों-सा सरगम,छेड़ हृदय की गलियों में,
इस अमूल्य अद्भुत जीवन को,सरसाओ बस प्रीत में।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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