वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक आप सभी के लिए समर्पित कर रहा हूँ। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।
शाम ढलते परिंदे शजर को मुड़े।
छोड़ मुझको सभी अपने घर को मुड़े।
इस शहर में जहर से भरे दौर में,
मन समझता नहीं कि किधर को मुड़े।।
(शजर -पेड़ /वृक्ष)
डॉ मनोज कुमार सिंह
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