वन्दे भारतमातरम्! मित्रो!आज एक ताज़ा ग़ज़ल पुनः आप सभी के लिए समर्पित कर रहा हूँ। विश्वास है , आप सभी का स्नेह टिप्पणी के रूप में जरुर मिलेगा।
आग,मिट्टी,हवा,पानी,जिंदगी को चाहिए।
खुबसूरत इक कहानी,जिंदगी को चाहिए।
हो रवानी,जोश औ जिंदादिली जिसमें सदा,
खुशबुओं से तर जवानी,जिंदगी को चाहिए।
दोस्त बचपन के न जाने,खो गए हैं सब कहाँ,
याद वो सारी पुरानी,जिंदगी को चाहिए ।
भेंट कर अहसास के कुछ फूल ,मन के बाग़ से,
प्यार की कोई निशानी,जिंदगी को चाहिए।
भूल ना जाएँ परिन्दें ,राह अपनी डाल के,
डोर रिश्तों की सुहानी,जिंदगी को चाहिए।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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