वन्दे भारतमातरम्! मित्रो!आज एक गजल प्रस्तुत है। आपका स्नेह अपेक्षित है।
जब रिश्तों पे पद,पैसा होता है भारी।
स्वार्थपूर्ति में होती,केवल मारामारी।
जिनके मन खुद चोर बसा,कैसे कर सकता,
गैरों के जीवन की ,सच्ची पहरेदारी।
सुख-दुःख तो आते-जाते मौसम है प्यारे,
भोग रहा इंसान यहाँ पर बारी-बारी।
कठपुतली सा जीवन,वे हीं जी पाते हैं,
मर जाती है जीते जी,जिनकी खुद्दारी।
चूम लिया करती है चरण,सफलता उसकी,
जंग हौसलों की सतत,जो रखता जारी।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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