आज एगो भोजपुरी के निठाह टटका गजल रउवा सब के समर्पित करत बानी। अगर नीक लागे त आपन सनेह जरुर दीहीं।
नेह के फूल मन में उगाईं।
गंध इंसानियत के सुंघाईं।
आजमा के कबो रउवा देखेब,
इ जिनिगिया हंसी-मुसकुराई।
रोशनी में अन्हरिया छिपा के,
अब बिकत बा जहर के मिठाई।
गैर के दर्द पर जे हँसेला,
आदिमी ना ह ,ह उ कसाई।
नन्हकी कहलस कि मत जा कमाए,
घुघुआमाना के हमके खेलाई।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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