वन्दे भारतमातरम्!आप सभी मित्रों के लिए एक मुक्तक समर्पित है।
शहर गाँवों के रिश्तों में ,कभी वो तुक नहीं पाते।
बड़ा बनने के चक्कर में ,कभी वो झुक नहीं पाते।
महल की गोद में पलते रहे,वो गाँव क्या जाने,
हमारी झोपड़ी में इसलिए, वो रुक नहीं पाते।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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