Thursday, July 30, 2015

मुक्तक

न्यायपालिका की जय जय हो-मित्रो!एक मुक्तक आपको समर्पित।

सच पूछिये तो दिल को ,अब सकून आ गया।
खुशियों का जैसे कोई ,टेलीफून आ गया।
छाया था अँधेरा जो,कई साल से यहाँ,
उसको मिटाने चाँद बन ,कानून आ गया।।...वन्दे भारतमातरम्!

मुक्तक (भोजपुरी)

राम राम!आप सबके आजुओ एगो मुक्तक परोसत बानी। नीक लागे त सनेह दीहीं।

भासा भोजपुरी,हिंदी ,देसवा से काटि के।
चलि गइले बड़े-बड़े ,खूबे माटी पाटि के।
जे भी बा बचल आजु ,उहो सब बिलात बा,
मारल जाता देस इ ,उलाटि के पलाटि के।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी मुक्तक

राम राम!आज एगो भोजपुरी मुक्तक रउवा सबके परोसत बानी,यदि नीक लागे त स्नेह दीहीं।

जे ना कुछउ करे ना, धरे आदमी।
चूं चूं चूहा नियर बस, करे आदमी।
जेकरा हाथन पे अपना ,भरोसा ना बा,
उ ना कबहूँ फूले  ना ,फरे आदमी।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Thursday, July 23, 2015

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!एक मुक्तक आप सभी मित्रों को समर्पित कर रहा हूँ। आप सभी का स्नेह सादर अपेक्षित है।

अदा करता है जो मिहनत,पसीना और कीमत।
उसे हीं प्राप्त होती है,सफलता की वसीयत।
अलग ये बात है गधे,यूँ बैठे कुर्सियों पर,
यहीं इस दौर की ,सबसे बड़ी शायद हकीकत।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गजल

वन्दे भारतमातरम्! मित्रो!आज एक गजल प्रस्तुत है। आपका स्नेह अपेक्षित है।

जब रिश्तों पे पद,पैसा होता है भारी।
स्वार्थपूर्ति में होती,केवल मारामारी।

जिनके मन खुद चोर बसा,कैसे कर सकता,
गैरों के जीवन की ,सच्ची पहरेदारी।

सुख-दुःख तो आते-जाते मौसम है प्यारे,
भोग रहा इंसान यहाँ पर बारी-बारी।

कठपुतली सा जीवन,वे हीं जी पाते हैं,
मर जाती है जीते जी,जिनकी खुद्दारी।

चूम लिया करती है चरण,सफलता उसकी,
जंग हौसलों की सतत,जो रखता जारी।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Sunday, July 19, 2015

गजल

वन्दे भारतमातरम! मित्रो,आज पुनः एक सामयिक ग़ज़ल हाजिर करता हूँ ।आपकी टिप्पणी ही मेरा हौसला है। अपना स्नेह अवश्य दें-

तू हीं बता यहाँ ,क्या नहीं होता।
हर कदम क्या ,हादिसा नहीं होता?

गैर तो गैर है,उसकी बात क्या करना,
खुद के रिश्तों में ,क्या दगा नहीं होता?

बिखर गया होता मैं ,कभी का जमाने में,
गर ख़ास मिट्टी का ,बना नहीं होता।

टपकते हैं लफ्ज,मेरी आखों से,
जुबां से जब कुछ ,अदा नहीं होता।

जबसे मालूम हुई ,जिंदगी की सच्चाई,
अब किसी बात पे मैं ,खफा नहीं होता।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गजल

मातृशक्ति को नमन! मित्रो,आज विश्व महिला दिवस पर अपने  मन की पीड़ा को एक रचना के माध्यम  से आपको समर्पित करता हूँ। अगर आप भी ऐसा हीं महसूस करते हैं तो अपनी टिप्पणी अवश्य दीजिये।like की जरुरत नहीं।

गा झूठे यशगान ,वंदेमातरम।
किया बहुत अपमान ,वंदेमातरम।

तेरे चरणों में कैसे अर्पित कर दूँ,
मन अपना बेईमान ,वंदेमातरम।

मातृशक्ति अपमानित सदियों से देखा,
फिर भी देश महान, वंदेमातरम।

राष्ट्र-अस्मिता की सीता कैसे आये,
कौन बने हनुमान ,वंदेमातरम।

अब भी काली ,दुर्गा की इस धरती पर ,
जगह-जगह शैतान ,वंदेमातरम।

तुझे देह बस समझ ,आज तक अपनाया,
किया नित्य अपमान, वंदेमातरम।

बाजारों,दरबारों की सौगात बनी,
सजी हुई दूकान,वंदेमातरम।

अहंकार पुरुषार्थ ,सदा पाले बैठा,
रहा कुचलता मान,वंदेमातरम।

सब कुछ तू ,दुनिया की नज़रों में लेकिन,
नहीं रही इंसान ,वंदेमातरम।

मुर्गे की बोटी महँगी ,तू सस्ती है,
यहीं आज पहचान ,वंदेमातरम।

क्या मिलता सुख,अमृत दुनिया को देकर ,
खुद करती विषपान,वंदेमातरम।

आज कोंख भी बना दिया तेरी खातिर,
हमने कब्रिस्तान ,वंदेमातरम।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गजल(भोजपुरी)

आज एगो भोजपुरी  के निठाह टटका गजल रउवा सब के समर्पित करत बानी। अगर नीक लागे त आपन सनेह जरुर दीहीं।

नेह के फूल मन में उगाईं।
गंध इंसानियत के सुंघाईं।

आजमा के कबो रउवा देखेब,
इ जिनिगिया हंसी-मुसकुराई।

रोशनी में अन्हरिया छिपा के,
अब बिकत बा जहर के मिठाई।

गैर के दर्द पर जे हँसेला,
आदिमी ना ह ,ह उ कसाई।

नन्हकी कहलस कि मत जा कमाए,
घुघुआमाना के हमके खेलाई।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!आप सभी मित्रों के लिए एक मुक्तक समर्पित है।

शहर गाँवों के रिश्तों में ,कभी वो तुक नहीं पाते।
बड़ा बनने के चक्कर में ,कभी वो झुक नहीं पाते।
महल की गोद में पलते रहे,वो गाँव क्या जाने,
हमारी झोपड़ी में इसलिए, वो रुक नहीं पाते।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Saturday, July 18, 2015

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्! एक मुक्तक-

तिरते दिख रहे हैं,कुछ सृजन के गीत आँखों में।।
समायी है कि जैसे धडकनों सी प्रीत आँखों में।
कभी जब शब्द शिल्पी रच रहा हो भाव का सागर,
लहर की थाप से उठते मधुर संगीत आँखों में।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्! मित्रो!आज एक मुक्तक आप सभी को समर्पित कर रहा हूँ। अपनी टिप्पणी से अपना स्नेह जरुर दें।

तेरा शौक परिंदों को, पिंजरों में रखना,
हम तो उनको नित नव पर देते हैं प्यारे।
सीधे को उल्टा करना,तुझको आता पर,
हम उल्टे को सीधा कर देते हैं प्यारे।।

    (नव पर -नया पंख,पर-लेकिन)

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी गजल

राम राम!आजु एगो रचना भोजपुरी में समर्पित करत बानी। इ रचना बिहार के शासन प्रशासन के आइना बा। अगर सही बुझाव त आपन स्नेह जरुर दीहीं।

यूपी,एमपी से भी आगे,निकलल आजु बिहार जी।
पंचायत से थाना तकले,फइलल भ्रष्टाचार जी।

बीओ,सीओ,बीडीओ,मुखिया,पलले बाड़ें लफ़ुअन के,
ओकनी से ही लेन-देन के,जुडल सगरी तार जी।

शिक्षा के त बात करीं मत,मुँहखुरिये छितिराइल बा,
मास्टर खाली भात बनावे में रोजे बेजार जी।

बिना घूस ना मिल पावत बा,विधवा या वृद्धा पेंशन,
सूखा राहत भी पावे में,अड़चन एक हजार जी।

सड़क बनल सब टुटि गइल,बिजली पानी के संकट बा,
जनता के सुख चैन हेराइल,चहुदिशि हाहाकार जी।

रोज अपहरण,रोज छिनैती जगह जगह गुंडागर्दी,
बलात्कार के रोजे चर्चा,करत इहाँ अखबार जी ।

जातिवाद के बोल इहाँ बा,राजनीति गठबंधन में,
अगड़ा-पिछड़ा ,अहीर,गड़ेरिया अउर केहू भूमिहार जी।

जनता के अधिकार छिनि के,कब ले जुल्म चली बोलीं,
अबकी उलटि -पलटि के रख दी,इ जनता सरकार जी।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कविता

मित्रो! जय प्रकाश मानस जी के वाल पर गगन गिल जी की एक कविता को पढ़ते हुए  मेरी प्रतिक्रिया भी एक कविता बन गई है क्या?पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया देने की कृपा करें। सादर,

गम का गुबार या बढ़ती हुई नदी
आखिर तोड़ ही देते हैं
सब्र के बाँध।
बह जाते हैं
बड़े-बड़े दरख़्त
वक्त के सैलाब में।
पिघल जाते है पत्थर
हूक की ज्वालामुखी में।
दुख तो मोम है
वह तो पिघलेगा ही।.....

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक(भोजपुरी)

आप सभे मित्रन के राम राम!एगो भोजपुरी मुक्तक के मजा लिहीं। आप सबके सनेह ही हमार ऊर्जा ह।उर्जा देत रहीं।

गीत धीरे से गावे,बजावे अधिक।
अपना गलती के हरदम छिपावे अधिक।
इ फितरत ह इंसान के जानि लीं,
काम थोड़ा करे पर,देखावे अधिक।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक फिर आपको समर्पित कर रहा हूँ। आप सबका स्नेह सादर अपेक्षित है।

चलो मैं मानता ,पढ़ लिख के अफसर हो गए।
क्या आदमी भी तुम, यूँ बेहतर हो गए।
हुई इंसानियत गायब, यूँ जबसे इस जहां में,
फूलों के गाँव में ,पूजनीय पत्थर हो गए।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहे(वर्ण व्यवस्था पर)

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज अपनी प्राचीन संस्कृति की उत्कृष्ट सामाजिक वर्ण व्यवस्था पर कुछ दोहे समर्पित कर रहा हूँ,जिसे आज जाति व्यवस्था से जोड़कर विकृत किया जा रहा है। अगर मेरे ये दोहे  सही लगें तो अपना स्नेह टिप्पणी के रूप में अवश्य दें-

ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य औ शूद्र शब्द प्रपन्न।
स्वाभाविक गुण,कर्म से ,वर्ण हुए उत्पन्न।।1।।

ब्रह्मा,विष्णु या कहो,चाहे मुझको रूद्र।
मैं हीं ब्राह्मण,वैश्य औ ,मैं हीं क्षत्रिय शूद्र।।2।।

क्षमाशील अंतःकरण और ब्रह्म का ज्ञान।
शम,दम औ सत् आचरण,ब्राह्मण की पहचान।।3।।

शूरवीरता,तेज औ धैर्य,चतुरता भाव।
युद्ध अडिग,दानी सदा,है क्षत्रिय स्वभाव।।4।।

खेती,गोपालन,बनिज,और सत्य व्यवहार।
यहीं वैश्य सद्कर्म है,और मूल आचार।।5।।

जो सबकी सेवा करे,सबको दे सम्मान।
स्वाभाविक गुण,कर्म यह,शूद्र वर्ण पहचान।।6।।

जाति-वर्ण में भेद है,जान सको तो जान।
मत विवाद में फँस कभी,खुद को तू पहचान।।7।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्! हाल ही में चीन की हरकतों पर एक मुक्तक समर्पित कर रहा हूँ। आप सभी मित्रों का स्नेह हीं मेरी ऊर्जा है।अपनी टिप्पणी देकर मेरी उर्जा को बढ़ाते रहिए।

किसी नापाक को ,यूँ पाक कहना ठीक है क्या?
जो अपनी आदतों से ,विषभरा इक सांप है अब।
थे मौलिक बाप जिसके हम,ये दुनिया जानती है,
अलग ये बात है कि चीन,उसका बाप है अब।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्! मित्रो!आज एक मुक्तक आपको समर्पित कर रहा हूँ। स्नेह अपेक्षित है। आपकी टिप्पणी हीं मेरी ऊर्जा है।

जाति-धर्म का फर्क नहीं करते हम।
पर,मूर्खों से तर्क नहीं करते हम।
जिस धरती का अन्न ग्रहण करते हैं,
उसका बेड़ा गर्क नहीं करते हम।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक(भोजपुरी)

आप सब मित्रन के राम राम!आज एगो भोजपुरी में मुक्तक आप सबके समर्पित करत बानी आ आप सबसे  टिप्पणी के सादर अपेक्षा करत बानी।

केहू कुछउ ना करे बुढ़ौती तलक,
लरिकइयें में केहू इतिहास रचेला।
केहू सगरी समुन्दर के पी करि के भी,
अपना जिनगी में खलिहा पियास रचेला।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक तिरंगा को नमन करते हुए आप सभी को समर्पित कर रहा हूँ।आपका स्नेह सादर अपेक्षित है-

श्रम-बूँदों से चमक रहा,जिसका मन चंगा।
राष्ट्रभक्ति की बहती ,जिसमें निशदिन गंगा।
माँ भारती का आँचल बन, पोंछ रहा है,
अपने बेटों का चेहरा ,ये आज तिरंगा।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहे और कुण्डलिया

वन्दे मातरम्! मित्रो! योग पर कुछ दोहे और एक कुण्डलिया आपके लिए समर्पित कर रहा हूँ। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है-

रहना है गर स्वस्थ तो,चला पैर औ हाथ।
करो सूर्य आसन सुबह,ओम ध्वनी के साथ।।

योगासन हथियार से,करते हम जब वार।
मोटापा,प्रेशर,शुगर,मिटते सभी विकार।।

अनजाना सच योग का,यहीं योग का सार।
मृत में अमृत भर करे, ऊर्जा का संचार।।

छोड़ दौड़ना भागना,टहल सुबह औ शाम।
सहज सहज पाओ सदा,स्वस्थ,सुखद परिणाम।।

कपालभाती नित्य कर ,कर अनुलोम विलोम।
प्राणायाम अभ्यास से,मिटते सब सिन्ड्रोम।।

योगासन हरता सदा,मन के सभी तनाव।
तन को देता दिव्यता,औ मन को मृदुभाव।।

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!कल विश्व योग दिवस है ,जिसे 177 देश समर्थन दे रहे हैं,जिसमें 46 मुस्लिम देश भी शामिल हैं। इस उत्तर आधुनिक युग में विश्व के तमाम देशों ने महसूस किया कि इस भागम भाग की दुनिया में तनाव बहुत है और तमाम रोगों की उत्पत्ति भी हो रही है ।इससे मुक्ति पाने का सबसे सस्ता ,सरल मार्ग योग का है। चूकि भारत ने इसका मार्गदर्शन किया  है तो  हमें इस दिवस पर गर्व करना चाहिए। योग दिवस पर एक कुण्डलिया आप सभी मित्रों को समर्पित कर रहा हूँ। स्नेह अपेक्षित है।

"योग दिवस उपलब्धि है,जिस पर हमको नाज़।
विश्व गुरु की राह पर,भारत फिर से आज।
भारत फिर से आज,जगाया है दुनिया को।
जिजीविषा का पाठ,पढ़ाया है दुनिया को।
स्वस्थ रहें,मस्ती करें,और भगाएँ रोग।
सत्य कर्म यह मानकर,नित्य करें हम योग।।"

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहे

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आजकल योग में सूर्य नमस्कार आसन पर बहुत विरोधी बातें हो रहीं है। दोहा छंद के माध्यम से मेरे दो सवाल हैं। उनका कोई उत्तर देगा?
दोहा आप मित्रों को समर्पित है-

क्यों सूर्यासन हो गया,धर्माधारित आज।
वज्रासन में बैठ जब,पढ़ते रहे नमाज़।। 1 ।।

जिस धरती में दफ़्न हो,पाया जन्नत द्वार।
वन्दे मातरम् से किया,क्यों तूने इनकार।।2।।

शब्दार्थ-(धर्माधारित-धर्म पर आधारित, जन्नत-स्वर्ग)

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज प.राम प्रसाद 'बिस्मिल'  जी को श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित चार पंक्तियाँ आपको प्रस्तुत कर रहा हूँ।आप मित्रों का स्नेह सादर अपेक्षित है...

साहस,त्याग से भरपूर,जिसका दिल नहीं होता।
ऐसे शख्स के जीवन का ,मुस्तकबिल नहीं होता ।
वतन के वास्ते जीना या मरना ,पर्व हो जिसका,
क्यों ऐसा आज पैदा अब कोई, 'बिस्मिल' नहीं होता।

शब्दार्थ-(मुस्तकबिल-भविष्य)

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक से  आत्म साक्षात्कार कीजिए और अच्छा लगे तो अपना स्नेह जरुर दीजिये।

मिरा मन बड़ा शातिर महाठग है।
मगर वाकिफ नहीं उससे ये जग है।
साथ रहते रहे हम आज तक पर,
राह उसकी अलग,मेरी अलग है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज एक समसामयिक मुक्तक प्रस्तुत कर रहा हूँ। म्यांमार में जिस प्रकार भारतीय सेना ने सर्जिकल आपरेशन किया है उसे देखकर भारत के पडोसी देश में छुपे दुश्मनों को एक सबक तो दे ही दिया है कि आगे भी हम दुश्मनों का ऐसा हीं हाल करेंगे।आप अधिक से अधिक like और अपनी टिप्पणी देकर देश के जवानों की हौसला आफजाई करें। सादर,
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किया ऐसा है पहली बार ये ,हमला जवानों ने।
मणिपुर के शहीदों का लिया, बदला जवानों ने।
गन्दी हरकतों से बाज जब ,आये नहीं दुश्मन,
बजाया गोलियों से प्राण पर, तबला जवानों ने।।

डॉ मनोज कुमार सिंह
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गजल

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज एक ग़ज़ल आपको सादर समर्पित कर रहा हूँ। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

मुस्कराहट पर मिरे एतराज क्यूँ है।
दुश्मनों-सा आपका अंदाज क्यूँ है।

मेरे हिस्से की मिली उपलब्धियों से,
बेवज़ह मन आपका नासाज़ क्यूँ है।

कल तलक सूरज उगाते फिर रहे थे,
फिर अंधेरों से मुहब्बत आज क्यूँ है।

नीव के पत्थर मिटे हर बोझ लेकर,
फिर कंगूरों के सिरों पे ताज क्यूँ है।

खुद पे हँस कर जिंदगी में जान पाया,
नूर मेरे अक्स का बेताज क्यूँ है।

(नासाज़-बीमार, नूर-चमक, अक्स-चेहरा)

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक आप सभी के लिए समर्पित कर रहा हूँ। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

शाम ढलते परिंदे शजर को मुड़े।
छोड़ मुझको सभी अपने घर को मुड़े।
इस शहर में जहर से भरे दौर में,
मन समझता नहीं कि किधर को मुड़े।।

(शजर -पेड़ /वृक्ष)

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज महाराणा प्रताप जयंती है ।वैसे इनका जन्मदिन  विक्रमी संवत कैलेण्डर के अनुसार प्रति वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया की मनाया जाता है। इस अवसर पर सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनायें और बधाईयाँ। एक मुक्तक के माध्यम से माँ भारती के सच्चे सपूत को नमन करता हूँ-

हे भारत माँ के स्वाभिमान!हे संकल्पों के परम ताप!
संघर्ष,त्याग के शौर्यपुरुष,उत्साह,जोश के श्रेष्ठ थाप!
मेवाड़-मुकुट मणि नमन तुम्हें,है अर्पित मन के सर्व सुमन,
हे मातृभूमि के बलिदानी,मेरे नायक राणा प्रताप!

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!एक समसामयिक मुक्तक आपको समर्पित कर रहा हूँ।  इस समय  टीवी पर सलमान फेवरोत्सव  और फैन्स में विवेकहीनोत्सव चल रहा है ।अगर मुक्तक  पसंद आये तो अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। सादर,

कभी काले हिरण को औ कभी इंसान को मारा।
तुमने आचरण से न्याय के सम्मान को मारा।
कितना झूठ बोला आज तक क़ानून के आगे,
मुआ सलमान तूने किस तरह ईमान को मारा।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गजल

वन्दे भारतमातरम्! मित्रो!आज एक ताज़ा ग़ज़ल पुनः आप सभी के लिए समर्पित कर रहा हूँ। विश्वास है , आप सभी का स्नेह टिप्पणी के रूप में जरुर मिलेगा।

आग,मिट्टी,हवा,पानी,जिंदगी को चाहिए।
खुबसूरत इक कहानी,जिंदगी को चाहिए।

हो रवानी,जोश औ जिंदादिली जिसमें सदा,
खुशबुओं से तर जवानी,जिंदगी को चाहिए।

दोस्त बचपन के न जाने,खो गए हैं सब कहाँ,
याद वो सारी पुरानी,जिंदगी को चाहिए ।

भेंट कर अहसास के कुछ फूल ,मन के बाग़ से,
प्यार की कोई निशानी,जिंदगी को चाहिए।

भूल ना जाएँ परिन्दें ,राह अपनी डाल के,
डोर रिश्तों की सुहानी,जिंदगी को चाहिए।

डॉ मनोज कुमार सिंह
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मुक्तक(भोजपुरी)

राम राम!आज एगो भोजपुरी मुक्तक आप सबके परोसत बानी। नीमन लागे त आपन विचार जरुर दीहीं।

कइसन प्रेम निभवल मितउ,
जिनगी बंजर खेत हो गइल।
सुखि गइल मन के फुलवारी,
सपना सगरी रेत हो गइल।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गजल

वन्दे मातरम्!मित्रो! आज एक ताज़ा गजल हाजिर है। आपका स्नेह टिप्पणी के रूप में सादर अपेक्षित है।
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होते दिल पर हमले ,कैसे-कैसे अक्सर।
आ जाते हैं रोज यहाँ,कुछ फूल-से पत्थर।

मैं केवल इंसान ,बने रहना चाहा तो,
ना जाने कितने इल्जाम,लगे हैं मुझ पर।

झुकना फितरत नहीं,मगर छोटे बच्चों को,
ख़ुशी-ख़ुशी मैं उठा लिया, करता हूँ झुक कर।

चलना सीखा रहे हैं,मुझको आज वहीं,
जीवन भर चलते रहे,जो बैसाखी पर।

ढोल ,मजीरे,तबले की प्रतिस्पर्धा में,
बजते हैं कुछ लोग यहाँ,ज्यों बजे कनस्तर।

रिश्तों के आँगन में ,बदबू सी आती है,
मन के द्वार बिछी है,जबसे मैली चादर।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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गजल

वन्दे  भारतमातरम्!मित्रो!आज एक ग़ज़ल हाज़िर है। आपका स्नेह टिप्पणी के रूप में सादर अपेक्षित है।

हिलती परछाईं रोशनी का पता देती है।
मुहब्बत मुसल्लसल आदमी का पता देती है।

उगा लो लाख चेहरे पर,हँसी का समंदर,
आँख इंसान की तश्नगी का पता देती है।

खुशबू याद की दिलों में जज्ब हो तो,
दर्द के होंठ पे ,हँसी का पता देती है।

मेरे दुश्मन हीं,तेरे दोस्त क्यों होते आखिर,
ये अदा तेरी,दुश्मनी का पता देती है।

लड़ेगा मौत से जो,उम्र भर आगे बढ़ कर,
यहीं जज्बात तो,जिंदगी का पता देती है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गजल

वन्दे  भारतमातरम्!मित्रो!आज एक ग़ज़ल हाज़िर है। आपका स्नेह टिप्पणी के रूप में सादर अपेक्षित है।

हिलती परछाईं रोशनी का पता देती है।
मुहब्बत मुसल्लसल आदमी का पता देती है।

उगा लो लाख चेहरे पर,हँसी का समंदर,
आँख इंसान की तश्नगी का पता देती है।

खुशबू याद की दिलों में जज्ब हो तो,
दर्द के होंठ पे ,हँसी का पता देती है।

मेरे दुश्मन हीं,तेरे दोस्त क्यों होते आखिर,
ये अदा तेरी,दुश्मनी का पता देती है।

लड़ेगा मौत से जो,उम्र भर आगे बढ़ कर,
यहीं जज्बात तो,जिंदगी का पता देती है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहे

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज तीन दोहे आप सभी को सादर समर्पित कर रहा हूँ। बुरा न माने तो कड़वी सच्चाई है कि हमारे कुछ मित्र जो मेरी हीं रचनाओं को मेरे वाल से उड़ाकर अपने वाल पर अपने नाम से पोस्ट कर देते हैं ।ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा हो चुकी है। आप मित्रों से विनम्र निवेदन है कि मुझे टैग न करें तथा मेरी रचनाओं पर टिप्पणी दें,पसंद करें,शेयर करें ताकि मित्रता की गरिमा बरकरार रहे। लीजिये ये तीन दोहे सादर समर्पित हैं-

1- चुटकुलों तक है सीमित,जिसका अपना ज्ञान।
     वो क्या समझेगा भला,हास्य-व्यंग्य की तान।।
2- जिनमें सतही ज्ञान है,बने फिरें विद्वान्।
     ह्वाट्सऐप पर झाड़ते,नित्य अलौकिक ज्ञान।।
3- ह्वाट्सऐप पर है नहीं,कोई मौलिक टेस्ट।
      मुझको तो दिखता वहाँ,केवल कॉपी पेस्ट।।

       डॉ मनोज कुमार सिंह

गजल

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज एक ग़ज़ल आपको समर्पित कर रहा हूँ ।आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

जिंदगी उसकी हसीन होती है।
जिसकी अपनी जमीन होती है।

जो दिल को बाँधती है रिश्तों में,
स्नेह की डोर,महीन होती है।

कभी बासी नहीं होती खुश्बू,
सदा ताजातरीन होती है।

दुनिया के दिलों में प्यार भर दे,
वो कविता बेहतरीन होती है।

मुल्क वो खुश नहीं होता कभी भी,
जहाँ बेटी गमगीन होती है।

देश कचरे से जियादा कुछ नहीं,
जिसकी बस्ती मलीन होती है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्देमातरम्!मित्रो!बहुत दुःख होता है जब हमारा कोई सिपाही माफिया के हाथों मारा जाता है और मीडिया उसे तवज्जो नहीं देता। दिल्ली में कोई कैंडिल मार्च दिखाई नहीं देता। कारण ये भी है कि इस से मीडिया की टी आर पी नहीं बढ़ती। ऐसे बहादुर सिपाही को शहीद का दर्जा भी नहीं देते। मुरैना में घटी घटना केजरिया के समाचार में इस प्रकार दब के रह गई जैसे कुछ हुआ हीं नहीं। उस शहीद सिपाही धर्मेन्द्र सिंह चौहान को एक मुक्तक के माध्यम से नमन करता हूँ-

वीर शहीदों के घर हमने ,दर्द का मेला देखा है।
भीड़ भरी दुनिया में रोते,उन्हें अकेला देखा है।
जिसने भी खोया अपनों को,सच्चाई की रक्षा में,
उनसे ज्यादा तकलीफों को,किसने झेला देखा है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो! अभी एक समसामयिक  मुक्तक कश्मीर  की तात्कालिक घटना पर आधारित है जहाँ पाकिस्तानी झंडा फहराने का मामला है.....

जाने कब से हमने यूँ हीं गलतफहमियाँ पाले हैं।
जैसे शौक से हमने कितने  कुत्ते-कुतिया पाले हैं।
यहीं तीन सौ सत्तर है,देखो तुम भी अब घाटी में,
  सूअर के छौने-से कितने ,मसरत,आसिया पाले हैं।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्देमातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक आपको समर्पित कर रहा हूँ। आपकी स्नेहपूर्ण टिप्पणी हीं मेरी लेखनी की उर्जा है। टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
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या तो दिल में वो हसरत नहीं है।
या तो मेरी जरुरत नहीं है।
जबसे हाकिम बने तुम शहर के,
मुझसे मिलने की फुरसत नहीं है।

डॉ मनोज कुमार सिंह
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