सगरी मित्र लोगन के राम राम!!
दलित साहित्य के नाम पर जवना तरह के चीज परोसल जाला ,ओहमे पूर्वाग्रह आ ईर्ष्या से भरल भाव सीधे देखाई देला।दलित विमर्श कइल अच्छा बात बा,अगर घृणा,द्वेष,वोटवाद अउरी पूर्वाग्रह से अछूत होखे ।अगर विचार करीं त पाएब कि
धरम के रचना सबल ना कइलस। उ काहें करित। उ त निर्बल पर शोषण आ अत्याचार त करबे करेला। धरम त कमजोरन के बल ह। सबल त ओकरा के चतुराई से चोरावेला आ ओकर पाखंडी रूप में व्याख्या करेला अउरी शोषण के एहके अस्त्र बनावेला।
भारतीय चिंतन पर तनी विचार करिके देखीं ,एकरा दर्शन पर नजर डालीं त देखब कि दलित आ शास्त्रचिंतन में दही चीनी लेखा अन्योन्यास्रित सम्बन्ध बा।
भारतीय संस्कृति के महान व्याख्याता मुनि नारद दासीपुत्र रहलें। भागवत में नारद जी अपना पूर्व जीवन के चित्र देखवले बाड़ें। दोसरका महान व्याख्याता वेद व्यास निषादकन्या (दासी-वत) के पुत्र रहलें। नीतिशास्त्र के व्याख्याता विदुर भी दासीपुत्र रहलें। हनुमान जी वानर आदिवासी रहलें। शबरी के कथा राम कथा के मार्मिक प्रसंग सभे पढ़ले बा। कंस के दासी अन्तःपुर के सगरी बात कृष्ण जी से बतवली। उ कंस के अत्याचार देखि के सुलगत रहली।
आलवार मुनिवाहन अन्त्यज रहे लोग। दास्यभाव केकर देन ह?भागवत में जड़भरत के चिंतन दास्य चिंतन ह।
आज दलित साहित्य के नाम पर खाली जातीय घृणा आ ईर्ष्या परोसेवाला तनी सोचो कि एह साहित्य से समाज के कवन लाभ बा सिवाय समाज के बँटवारा करेके।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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