वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज मेरी एक ताज़ा ग़ज़ल के तीन शेर आपको सादर समर्पित हैं।आपकी टिप्पणी अपेक्षित है।
नजर जब से गड़ी है शजर पर,भूखे दरिंदो की।
पड़ी है जान आफत में यहाँ,नन्हे परिंदों की।
उसे सच बोलना था,बोल सकता था नहीं ऐसे,
तवाजुन खो दिया पीकर,भरी महफ़िल में रिन्दों की।
किसी भी बात पर जुंबिश ,नहीं करते वो मुर्दों सी,
यहीं है आचरण मेरे शहर के ,सभ्य जिन्दों की।
(शजर -पेड़,परिंदा-पक्षी,तवाजुन-संतुलन,रिंद-शराबी)
डॉ मनोज कुमार सिंह
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