वन्दे मातरम्! ये गजल राजेश रेड्डी जी की है जिसे ओम थानवी जी ने अपने वाल पर लगाया है कि देश में भय का परिवेश है इसलिए साहित्यकार अपना अवार्ड लौटा रहे है। इस रचना से मेरी कोई शिकायत नहीं है लेकिन इसके परिप्रेक्ष्य से मैं सहमत नहीं हूँ। राजेश हिंदी गजल के नामचीन हस्ताक्षर हैं। मैं उनका हृदय से सम्मान करता हूँ ।मैं थानवी जी के विचारों से सहमत नहीं हूँ इसलिए इस गजल के प्रतिक्रिया स्वरुप मैंने भी एक गजल समर्पित किया है ।अगर आपको सही लगे तो अपना स्नेह दीजिए। सादर,
डॉ मनोज कुमार सिंह
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राजेश रेड्डी की गज़ल
दिन को दिन रात को मैं रात न लिखने पाऊं
उनकी कोशिश है कि हालात न लिखने पाऊं
हिन्दू को हिन्दू मुसलमान को लिखूं मुसलिम
कभी इन दोनों को इक साथ न लिखने पाऊं
सोच तो लेता हूँ क्या लिखना है, पर लिखते समय
कांपते क्यों हैं मेरे हाथ, न लिखने पाऊं
जीत पर उनकी लगा दूँ मैं क़सीदों की झड़ी
मात को उनकी मगर मात न लिखने पाऊं
- राजेश रेड्डी
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मेरी गजल
दिन को दिन रात को ,रात लिखिए।
अलग-अलग उनके ,हालात लिखिए।
हिन्दू लिखिए या मुसलमान लिखिए,
सही जो भी हो वो ,जज्बात लिखिए।
हाथ कटने का डर है ,तो छोडिये कलम,
सच के नुमाइन्दे हैं ,तो सही बात लिखिए।
क्यों सियासत में ढकेलते हो कलम को,
कलमकार हो सृजन ,सौगात लिखिए।
किसी की जीत पर ,कसीदे क्या पढ़ना,
सत्य शिव सुन्दर की ,तहकीकात लिखिए।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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