वन्दे भारतमातरम्! मित्रो!आज का पोस्ट जातिवाद के खुरदुरे सच पर आधारित है ,कृपया सार्थक टिप्पणी देकर अपने विचारों से अवगत करायें। राजनीतिक या व्यक्तिगत टिप्पणी मना है।
मित्रो! आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी आजकल जातिवाद का सांप अपना फन फैलाकर फुफकार रहा है। मैं देखता हूँ कि जो लोग जाति पर आधारित सरकारी सुविधाओं का लाभ ले रहे है उनसे आरक्षण पर चर्चा करो तो बिफर जाते है और कहते हैं कि पहले जातिवाद ख़त्म करो तब आरक्षण हटाने की बात करो। उनकी बात किसी हद तक सही लगती है,परन्तु इस जातिवाद का विरोध करने वाले खुद सरकारी लाभ लेने के लिए जाति प्रमाण पत्र आखिर क्यों लेते हैं? अतः जातिवाद मिटाने में सर्वप्रथम यह प्रमाण पत्र बाधक है। इसे तत्काल रूप से बंद कर देना चाहिए। क्योंकि जो भी व्यक्ति जातिवाद का खात्मा चाहता है सबसे पहले इस प्रमाण पत्र को लेना बंद कर दे। जातिवाद विरोध में दोहरा चरित्र नहीं चलेगा।
दूसरी बात अंतर्जातीय विवाह में भी इस बात पर कौन तैयार है कि वह अपनी बेटी,बहन की शादी तथाकथित अपने से छोटी जाति के लड़के से करेगा।
सामान्य वर्ग में तथाकथित दबंग जातियाँ तो इस पक्ष में कत्तई तैयार ही नहीं हैं। अगर ऐसा होता भी है तो ऑनर किलिंग का मामला आप देखते ही हैं।जो लोग अपनी जाति में हीं शादी के पक्षधर है उनका मैं भी समर्थक हूँ। इसलिए यह विषय उस जातिवादी व्यवस्था को समर्पित है जो आरक्षण के लिए जातिवाद को प्रश्रय देते है। वर्गवार स्थिति देखिये
-पिछड़ा वर्ग जिसमें सैकड़ों जातियाँ हैं सामजिक तौर पर जो आपस में भी ऊँच नीच का भेदभाव रखती हैं और अपनी श्रेणी में भी अपने से नीची समझी जाने वाली जातियों में अपनी बेटी बहन की शादी करने को तैयार नहीं है। इसी प्रकार दलित वर्ग में भी यहीं कुंठा है कि अपने से नीची समझे जाने वाली जातियों में अपनी बेटी बहन देने को तैयार नहीं। जैसे एक जाटव (सामाजिक तौर पर चमार) एक महादलित भंगी कही जाने वाली जाति में अपनी बेटी बहन की शादी नहीं करता और उसके प्रति घृणा का भाव भी रखता है। आदिवासियों की तो बात हीं छोड़ दीजिये। यानी सभी जातियाँ अपने बराबरी या अपने से ऊँचे कुल में शादी विवाह की सोचती है। इसके लिए क्या नकली जातिवाद का विरोध करने वाले लोग जिम्मेदार नहीं है। जब ऊपर से नीचे तक और नीचे से ऊपर तक एक ही मानसिकता है तो जातिवाद का समर्थन या विरोध बेकार की बात है। सबसे बड़ी बात हमारी मानसिकता की है जो स्वार्थ में दोहरा चरित्र और चेहरा लेकर जी रहा है। क्या इससे जातिवाद ख़त्म हो जाएगा?यह बात बिलकुल खोखली और स्वार्थपूर्ण है।यानी जाति प्रमाण पत्र लेकर जातिवाद का विरोध करना दोहरे चरित्र को दर्शाता है। मेरा मानना है कि कोई भी जाति छोटी या बड़ी नहीं होती बल्कि मानसिकता की बात होती है और आज इस उत्तर आधुनिक युग में भी जातिवाद हमारे भीतर बहुत गहरे पैठी है जिसे निकाल फेकना ढपोरशंखी प्रयास साबित होगा। इस कोढ़ को भीतर लिए जो लोग बैठे हैं वे लाख प्रयास कर लें उनका मानसिक और सामजिक उत्थान कभी नहीं होगा। वे भले देश के सर्वोच्च पद पर हीं क्यों न बैठे हों।ऐसे लोग जातिवाद मिटाने के लिए सीधे सवर्ण जाति के लड़के लड़कियों से शादी की बात करने लगते हैं जबकि वे अपने हीं वर्ग में अपने से नीच कही जाने वाली जातियों में शादी के लिए पहल नहीं करते।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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