Monday, December 14, 2015

गजल

वन्दे मातरम्! मित्रो!एक ताजा गज़ल हाज़िर है आपकी अदालत में। आपकी अधिक से अधिक टिप्पणी ही मेरी उर्जा है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

पिंजरे से इक परिंदे की,उड़ान की बात।
झूठी लगती है दुनिया,जहान की बात।

लाख कोशिश के बाद ,भी समझता नहीं,
चुग्गे का गुलाम,आसमान की बात।

दर्द अपना जो ,बयां नहीं करता,
कौन समझेगा ,उस बेजुबान की बात।

आदि इत्यादि मरे,वतन परस्ती में,
कौन जानेगा?,छोड़कर महान की बात।

बँट चुका मुल्क,ये सियासत में,
महज़ लेकर हिन्दू ,मुसलमान की बात।

अब तो सम्मान भी ,ज़रा सोंच कर करना,
कहीं कर न बैठे,कोई अपमान की बात।

मुल्क को तोड़ना,आसान है 'मनोज'
दिलों को जोड़ना ,है इम्तेहान की बात।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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