Monday, December 14, 2015

बाबूजी के भोजपुरी गीत

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज मेरे बाबूजी का जन्मदिन है।आज उनको नित्य की भाँति मेरा हार्दिक नमन। बाबूजी!आप शरीर से न सही पर आत्मवत मेरे हृदय में विराजते हैं। दुनिया को कैसे बताऊँ कि आप यहीं रहते हैं मेरे साथ।    
मित्रो!आपको पता है कि मेरे बाबूजी भोजपुरी और हिन्दी के एक बहुत संवेदनशील रचनाकार थे।तो आइये आप भी पढ़िए उनका एक भोजपुरी गीत और उनकी संवेदना को समझिये।

डॉ मनोज कुमार सिंह  

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                   ०००गीत०००
                 रचना-अनिरुद्ध सिंह'बकलोल'
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हमरा मन के पागल पंछी,कहाँ कहाँ भटकेला।
                        1
बिना दाम गुलाम बना ल ,एक मीठ बोली पर।
अतना दिल के साफ़ कि चाहें बईठा द गोली पर।
चाहsत ऊपर रखवा द,चिटुकी भर मैदा के।
बंदी कर ल मन पंछी के,प्रेम जाल बिछवा के।
भोला पंछी दाव-पेंच के,तनिको ना समझेला।
हमरा मन के पागल पंछी.........
                        2
अबहीं बैठि सुनत बा कतहीं,मधुमासी के तान।
तब तक केहू मधुर कंठ से,गा देला कुछ गान।
बड़ा रसिक मन के पंछी ई,तुरत उहाँ दउरेला।
बात बात में खिलखिल जाला,बात बात मउरेला।
एह डाली से ओह डाली पर,डाल डाल लटकेला।
हमरा मन के पागल पंछी...........
                        3
चाहें तू अखियाँ से हँसि लs,या अँखियन से रोलs।
बिना हिलवले जीभ भले ही,अँखियन से ही बोलs।
अलगे हीं होला दुनिया में,अँखियन के इक भाषा।
बिना बतवले पढ़ि लेला मन,अँखियन के परिभाषा।
पढ़ लेला पर तुरत उहाँ से,पाँखि झाड़ झटकेला।
हमरा मन के पागल पंछी..........
                         4
बेदरदी दुनिया में भटकत ,ठहर ना पाइल पाँव।
ललकेला मन कि सुस्ताईँ,लउकल तरु के छाँव।
ई ना समझेला कि दुनिया,खोजे एक बहाना।
बईठल डाली पर पंछी के,बनि जाला अफसाना।
कतना भोला मन के पंछी,ना परवाह करेला।।
हमरा मन के पागल पंछी.......
                           5
कभी कभी उड़ते उड़ि जाला,आसमान से उपर।
फिर तुरते मनवा चाहेला,आ जईतीं धरती पर।
ना जानेला चिकनी चुपड़ी,एतने बात खराब।
का होई अंजाम ना बुझे,देला साफ़ जवाब।
एही से ई ढुलमुल पंछी,मन मन में खटकेला।
हमरा मन के पागल पंछी........
                          6
दूध पियब तरकूल के नीचे,लोग कही की ताड़ी।
अहंकार,मद में मातल जग,साधू बनल अनाड़ी।
जे गर्दन तक फँसल पांक में,उ का बोली बोली?
मारीं चांटी घर घर के हम,कच्चा चिट्ठा खोलीं।
थाकेला पंछी डमखू पर,थोरिका सा अड़केला।
हमरा मन के पागल पंछी.........
                          7
कभी कभी उड़ते उड़ि जाला,अइसन एक गली से।
गमक उठेला मन के आँगन,जहवाँ एक कली से।
केहू केवल एक बोल हीं,बोल दीत मुस्का के।
हो जाईत मदहोश बटोही,एक झलक हीं पाके।
एक झलक के खातिर पंछी,कतना सर पटकेला।
हमरा मन के पागल पंछी............
                           8
सागर से भी गहरा बाटे,आसमान से नील।
अमिय हलाहल मद में मातल,उ अँखियन के झील।
जवना में हरदम लहरेला,मदिरा अइसन सागर।
लेकिन अबहीं ले खाली बा,हमरा मन के गागर।
एक बूंद खातिर पंछी के,कतना मन तरसेला।
हमरा मन के पागल पंछी..........
                           9
तू का जनबs कईसन होला,मन के पीर पराई?
उहे समझेला पीड़ा के,जेकरा पैर बेवाई।
प्रेम-पाश में बाँध गाछ के,उपर पहुँचल लत्तर।
दू दिल मिलला पर का होला,तू का जनब पत्थर।
तू का जनब मन में कईसन,विरहानल धधकेला।
हमरा मन के पागल पंछी.........
                         10
पास बसेला बैरी लेकिन,लागे कोस हजार।
प्रियतम मन के अन्दर होला,चाहें बसे पहाड़।
सिन्धु बीच प्यासल बा पंछी,लहर रहल बा सागर।
प्यास मिटावल मुश्किल,तानल लोक लाज के चादर।
आह उठेला सर्द दर्द,जब झंझा बन झनकेला।
हमरा मन के पागल पंछी,कहाँ कहाँ भटकेला।।

कवि-अनिरुद्ध सिंह'बकलोल'
ग्राम+पोस्ट-आदमपुर
थाना-रघुनाथपुर
जिला-सिवान(बिहार)

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