Monday, December 21, 2015

गजल


वन्दे मातरम्!मित्रो! एक समसामयिक गजल समर्पित है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

चलो आखिर अदालत ने ,बुलाया तो।
ऊँट पहाड़ के नीचे,आया तो।

जो देश से बड़ा समझते थे खुद को,
क़ानून उनकी औकात ,बताया तो।

ठिठुरती ठंढ से ,हम मर ही जाते,
सुबह में सूर्य चेहरा,दिखाया तो।

चोर कोतवाल पर,भारी हैं अब भी,
चुनावों में सियासत,आजमाया तो।

क्या कर लिया अदालत,दरिंदे का,
उम्र के नाम पर ,निकल आया तो।

डॉ मनोज कुमार सिंह












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