Monday, December 14, 2015

आरक्षण की समीक्षा:वक्त की मांग

वन्दे मातरम् !मित्रो! आपको आज फिर एक घटना और स्थिति के माध्यम से  सही बात कहने की कोशिश कर रहा हूँ जो थोड़ी कड़वी तो है लेकिन समाज और राष्ट्र हित में है।
राजनीतिक और व्यक्तिगत टिप्पणी से बचें।

एक मरीज बहुत दिनों से बीमार चल रहा था।उसकी हालत बहुत खराब थी। वह अपना इलाज कराने के लिए सरकारी डाक्टर के पास गया। डाक्टर ने मुफ्त में उसका इलाज करना शुरू किया और उसे सालभर में रोगमुक्त करके स्वस्थ कर दिया। जब मरीज स्वस्थ हो गया तो डाक्टर ने कहा की अब घर जाओ और मजे करो ,लेकिन मरीज  मुफ्त मिलने वाले सुविधाओं का इतना आदि हो गया कि वह हास्पिटल से घर ही नहीं जाना चाहता था। डाक्टर से बोला कि मुझे मरीज बनाकर ही रखिये और एक सर्टिफिकेट भी देते रहिये कि मैं बीमार हूँ ।डाक्टर ने मना किया कि ये कैसे हो सकता है कि आप स्वस्थ हो चुके फिर भी मरीज बनकर जीना चाहते है और जबरदस्ती सर्टिफिकेट चाहते है मरीज होने का।मरीज ने लालच दिया कि डाक्टर साहब आप मेरे लिए जो दवा लिखेंगे उसका फर्जी बिल बनवाकर सरकार से पैसा ले लेंगे जिसमें आपका 50%हिस्सा होगा। डाक्टर लालच में आ गया और एक स्वस्थ आदमी को मरीज बनाकर वारे न्यारे करने लगा। आज भी वह स्वस्थ आदमी सरकारी लाभ पाने के लिए तत्पर है ,लेकिन एक वास्तविक मरीज अपने सही इलाज करवाने में अपने को असमर्थ पा रहा है।
यहीं स्थिति आरक्षण में है जिसमें सामाजिक और आर्थिक स्तर पर सशक्त हो चुके तथाकथित पिछड़े और दलित वर्ग के लोग अन्य अशक्त लोगों के अधिकार और हिस्से पर कुंडली मारकर बैठे हैं।लालू,नितीश,पासवान,मायावती,मुलायम यहाँ तक कि नरेन्द्र मोदी ऐसे बहुत सारे नाम हैं क्या आज भी इन्हें आरक्षण की दरकार है?अगर नहीं तो इन्हें सामान्य वर्ग में डाल देना चाहिए। मेरा दावा है जातिवाद की सियासत ख़त्म तो नहीं लेकिन उसकी रीढ़ टूट जायेगी।
आरक्षण का उद्देश्य समाज के सभी तबके को बराबरी की हैसियत दिलाना और पिछड़े को अगड़े के साथ खड़ा करना था लेकिन इसकी प्रक्रिया और दांवपेच के चलते उपर उठने का लक्ष्य खो गया और पिछड़ा बनने की होड़ शुरू हो गई।वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे का स्पष्ट कहना है -
"आरक्षण की आज कोई उपयुक्तता नहीं रह गयी है। आरक्षण का एक उद्देश्य  एम्पावरमेंट (सशक्तिकरण)था न कि नौकरी देना।सबसे बड़ी एम्पावरमेंट राजनीतिक एम्पावरमेंट होती है। आज की तारीख में सच्चाई ये है कि हमारे प्रधानमन्त्री भी एक पिछड़े वर्ग से है। राजनीति में पिछड़े वर्ग की काफी हिस्सेदारी बढ़ी है। जितना एम्पावरमेंट होना था हो चुका है। इससे ज्यादा नहीं हो सकता। अब आरक्षण का गैर राजनीतिकरण करने का समय आ गया है। इसके गैर राजनीतिकरण के लिए राजनीतिक सहमति बनानी होगी अन्यथा स्थिति बहुत खराब हो जायेगी। जब इसका प्रावधान किया गया था तब उद्देश्य सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व देकर समाज में स्टेटस देना था। आज समय बदल गया है। अब इसकी जरुरत नहीं रह गई है। वैसे भी 65 सालों में स्थिति नहीं बदली तो अब नहीं बदलेगी।"
अंत में सभी मित्रों से निवेदन करूँगा कि आप "आरक्षण की समीक्षा:वक्त की मांग है"में भाग लेकर अपनी सार्थक टिप्पणी दें ताकि इस विषय में सही दिशा की ओर अग्रसर हुआ जा सके। धन्यवाद।।
                              डॉ मनोज कुमार सिंह

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