वन्दे भारतमातरम्! मित्रो!आज आपको युगीन संदर्भो पर आधारित एक ताजा गजल समर्पित कर रहा हूँ।आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।
जड़ों में था हमारे ,सत्यता के शोध का चिंतन।
परोसा जा रहा है आजकल,प्रतिशोध का चिंतन।
जो कुंठित लोग सच का सामना,करने से डरते हैं,
दिखाते हैं नपुंसक सा महज,अवरोध का चिंतन।
भले हो दामिनी लुटती या कटते सिर जवानों के,
कभी करते नहीं ये बुद्धिजीवी,क्रोध का चिंतन।
शेरों की धरा पर आ गए ,औलाद स्यारों की,
कराते नित्य मजहब, जातिवादी,बोध का चिंतन।
शठे शाठ्यम की भाषा में,अब इनसे बात करनी है,
भुलाकर दिल से इज्ज़त,मान औ अनुरोध का चिंतन।
डॉ मनोज कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment