वन्दे मातरम्!मित्रो,आज एक गजल आपको समर्पित कर रहा हूँ। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित हैं।
मुझको मालूम नहीं, क्या करता हूँ।
दोस्तों को मैं रोज ,खफ़ा करता हूँ।
सच अगर बोलना,गुनाह है तो,
हरेक पल मैं ऐसी ,खता करता हूँ।
दोस्त दुश्मन-से , पेश आते जब,
दुश्मनी में दोस्ती का ,पता करता हूँ।
मन से बीमार हैं,पचती नहीं दवा उनको,
खुदा खैर करे ,दिल से ,दुआ करता हूँ।
उनको मालूम है ,मेरी कमजोरी,
बेवफा दोस्त से भी मैं,वफ़ा करता हूँ।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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