Monday, December 14, 2015

मुक्तक

वन्दे मातरम्! मित्रो! आज एक समसामयिक मुक्तक आपको समर्पित कर रहा हूँ। आपका स्नेह टिप्पणी के रूप में सादर अपेक्षित है।

सियासत में यूँ जबसे जाति-मज़हब, ढाल बन गए।
सुना है चोर सारे आजकल ,कोतवाल बन गए।
गले मिलकर घोटालेबाज से,ऐसे दिखे हैं 'आप',
कि जैसे भाल पर ईमान के,सवाल बन गए।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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