वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक समसामयिक मुक्तक आपको समर्पित कर रहा हूँ। आप सभी का स्नेह हमेशा की तरह सादर अपेक्षित है।
जाति-धर्म के बादल छाये,हर बस्ती,हर गाँव में।
लहूलुहान सौहार्द्र पड़ा है,जहाँ घृणा के पाँव में।
कैसे पार पथिक पहुँचेगा,प्रेमनगर की धरती तक,
खुद मांझी जब छेद किया हो,संबंधों की नाव में।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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