Monday, December 14, 2015

कविता

वन्दे भारतमातरम्! मित्रो,एक समसामयिक युगबोध की कविता आपको समर्पित कर रहा हूँ ।अच्छी लगे तो टिप्पणी देकर मेरा उत्साहवर्धन जरुर करें। आपकी प्रतिक्रया हीं मेरी उर्जा है।
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युग के मुहावरे
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क से कत्लेआम
ख से खलास
ग से गबन
घ से घोटाला
च से चमचागिरी
ये सब इस युग के
प्रासंगिक मुहावरे हैं
जो इस समय की पीढ़ी के लिए
शिक्षा की बुनियादी सीख है।
बच्चे इस ककहरा को पढ़कर
बन रहे हैं डॉक्टर,इंजीनियर,
वैज्ञानिक और नेता।
ये अलग बात है
कि कोई भी बच्चा इंसान बनने की
कोशिश नहीं करता।
जो अ से अपहरण और
आ से आगजनी का पाठ     
आचरण में ढाल लेता है
वह उतनी तेजी से
विधायक,सांसद या
मुख्यमंत्री की कुर्सी
सम्हाल लेता है।
भ्रष्टाचार
उनके लिए
गीता का पहला श्लोक है
जिसमें धर्म के स्थान पर
धृष्टता और
कुरु के स्थान पर क्रूरता
युगबोध का अनुदित पाठ है।
उत्तर आधुनिक युग का व्याकरण
और भी अजीब है
संज्ञा की जगह संगीन
और सर्वनाम की जगह
सर्वनाश
यानी
वर्तमान पीढ़ी
सम्पूर्ण विनाश के करीब है।।

डॉ मनोज कुमार सिंह
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