वन्दे मातरम्!मित्रो!आज बाजारवाद के युग में साहित्य की स्थिति पर तीन दोहे हाजिर हैं।
1
अब साहित्य न साधना,ना तप,ना आचार।
कवि,प्रकाशक,वितरक,करते बस व्यापार।।
2
डुब जाता तब काव्य का,प्रखर,दिव्य आदित्य।
किलो से बिकते जहाँ,भाव भरे साहित्य।
3
जिसे समझता था सदा,अच्छा रचनाकार।
जाति,धर्म औ लिंग का,निकला ठेकेदार।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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