आज निलय उपाध्याय भैया के पोस्ट पर माँ गंगा की दुर्दशा पर मेरी एक काव्यात्मक टिप्पणी।आप भी पढ़े।
जो गंगा
हमारी शपथ की पवित्रता थी,
जो गंगा
हमारे जीवन के
हर समस्या का समाधान थी,
आज प्रश्न बनकर
खड़ी हो गई है
भगीरथ के संकल्प के द्वार पर,
कब होगा विचार,
उसके उद्धार पर।
गंगा कहाँ प्रवाहित है?
जो प्रवाहित है
वह है शहरों का कचरा जल,
जिसे गंगा जल समझ
हम आँखे मूंद अंधभक्ति दर्शा रहे हैं
और गंगा चीत्कार कर रही है,
डकार रही है गौ माता की तरह।
वो माँग रही है अपना हक़
अपनी पवित्रता का हक़
जिसे हम अपने अपने स्वार्थ में
डकार चुके हैं
और
धीरे धीरे
नाली के कीड़े बनते जा रहे हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment