वंदेमातरम्!मित्रो!एक गीतिका सादर हाज़िर है।स्नेह सादर अपेक्षित है।
वो आएगा मगर कोई फ़साना ले के आएगा।
वक्त पर क्यों नहीं आया बहाना ले के आएगा।
नई बातें, नए वादे,बहुत कुछ और भी होगा,
पुलिंदा ख़्वाब का अद्भुत खज़ाना ले के आएगा।
ये अगहन की सुबह होकर रुवांसी धुंध से पूछे,
क्या सूरज धूप का टुकड़ा सुहाना ले के आएगा?
सुबह मजदूर खाली पाँव धंधे के लिए निकला,
ये निश्चित है नहीं कि शाम दाना ले के आएगा।
बहुत-सी मुश्किलें जब जिंदगी की राह रोकेंगी,
सभी का हल ये इकदिन खुद जमाना ले के आएगा।
लाख पाबंदियाँ अभिव्यक्ति पर कुर्सी लगाएगी,
सच की तहरीर ये कविता दीवाना ले के आएगा।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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