Tuesday, February 6, 2018

'दलितों का हक सवर्ण नही,दलित ही मार रहे'


"दलितों का हक सवर्ण नहीं ,दलित ही मार रहे"
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जिस दिन
नौकरियों में योग्यता (औचित्यपूर्ण)को
वरीयता मिल जायेगी,समझ लो उसी दिन
उसी की कमाई से अयोग्यता(अनौचित्यपूर्ण) भी
सुखी जीवन जीने लगेगी।
जैसे बढ़िया मकान बनाने के लिए
एक अच्छे इंजीनियर और कारीगर की
तलाश रहती है,
मरीज के लिए अच्छे डॉक्टर,गाड़ी के लिए
एक कुशल और प्रशिक्षित चालक...
यानी हर जगह हर क्षेत्र में एक अच्छे,कार्यकुशल
और बेहतर व्यक्ति की तलाश रहती है
जो समस्याओं का चुटकी में निदान कर दे।
लेकिन सियासी दाँवपेंच ने
कुर्सी और सत्ता प्राप्ति के लिए
लोकतंत्र का नकली दुहाई देकर
अयोग्यता को लादने का काम किया है।
अयोग्य नेता हो या अधिकारी या कोई कर्मचारी
वह कभी भी समाज को
बेहतर नहीं दे सकता।
वैसे योग्यता किसी जाति,धर्म की बपौती नहीं होती,
जैसे गरीबी जाति पूछकर नहीं आती।
आज देश जिस दौर से गुजर रहा है,
उसमें आरक्षण का सबसे बड़ा दुश्मन
योग्यता ही तो है,
जिसमें योग्य अयोग्य है
और अयोग्य को योग्य के स्थान पर
जबरदस्ती थोपा जा रहा है।
आज योग्यता को जाति के पचड़े में फँसाकर केवल और केवल सियासत की जा रही है।

निःसंदेह
ज्योतिराव फुले, गुरूघासीदास, रैदास, कबीरदास, रविदास, डॉ. भीमराव अम्बेडकर,
जगजीवनराम, पलवांकर बालू
अपनी मेहनत, काबिलियत से
समाज में पथप्रदर्शक रहे
और उनका ध्येय केवल और केवल
दलित उत्थान ही रहा,
लेकिन समय बीतने के साथ
अब ऐसा कोई भी नहीं है।
अब सभी दलितों के हिमायती बन राजनीति कर दलितों को केवल मोहरा बना
अपनी-’अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हुए है। आज दलितों के सबसे बड़े दुश्मन ब्राह्मण या सवर्ण नहीं
बल्कि विगत् 60 वर्षों में
तेजी से उभरता दलितों के मध्य
एक आभिजात्य वर्ग हो गया है
जिसमें कलेक्टर, डॉक्टर, प्रोफेसर,
इंजीनियर एवं ऊंचे पदों पर बैठे लोग हैं
जो मुख्य धारा में कभी के आ चुके हैं
और अब वास्तविक दलितों के हकों पर
डाका डाल रहे हैं।
आज अनुसूचित जाति एवं
अनुसूचित जनजाति का
एक सुविधा सम्पन्न वर्ग बन गया है
इसीलिए आज सभी नैतिक एवं
अनैतिक तरीके से फर्जी प्रमाण पत्रों के सहारे
आसानी से शासकीय नौकरियां पा रहे हैं।
अब तो वर्तमान में उच्च जातियों वाले सरनेम
जैसे शर्मा, वर्मा, ठाकुर एवं सिंह भी
लिखने लगे है।
कलेक्टर, डॉक्टर, इंजीनियर
एवं अधिकारियों के बच्चों को अब
आरक्षण की क्या आवश्यकता है। ये सब
समाज की मुख्य धारा में आ चुके है।
अब ये लोग
वास्तविक दलित बच्चों का हक
मार रहे हैं।
इसके लिए अति दलितों को
पुनः एक नया आंदोलन चलाकर
इन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना होगा।
बाबा भीमराव अम्बेडकर की मंशानुसार
10 वर्ष के पश्चात् आरक्षण की स्थिति को
रिव्यू किया जाना था
जो नहीं किया गया? आखिर क्यो?

विगत् 60 वर्षों में 10 वर्ष के अंतराल में
कितने दलित मुख्य धारा में आए
एवं कितने रह गए का रिव्यू क्यों नहीं किया गया? आखिर किसकी जवाबदेही बनती है।
सूचना का अधिकार के तहत् केन्द्र एवं राज्य शासन से जनता पूछ सकती हैं?

डॉक्टर, कलेक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर
एवं अन्य ऊँचे प्रशासनिक पदों पर बैठे लोगों को
दलित आरक्षण से बाहर रखा जाए
एवं दस्तावेज तैयार किया जाये।
मध्यमवर्गीय दलित एवं
अति दलितों को चरणबद्ध तरीके से
सुविधा प्रदान कर मुख्य धारा में लाने का
टारगेट समय सीमा द्वारा
दृढ़ विश्वास के साथ निश्चित् करें
एवं पालन न करने वालों को
कड़ा दण्ड भी दिया जाये।
उस समय सीमा का भी सर्व सम्मति से निर्धारण हो जिसके तहत् आरक्षण को
पूर्णतः समाप्त कर
एक विकसित समाज का निर्माण हो
जिसे समय-समय पर न्यायपालिका भी कहती रहती है।
विचारों में दृढ़ता
एवं राजनीतिक स्वार्थ को परे रख
स्वस्थ्य समाज के निर्माण में विकास के लिए सभी
एकजुट हों।
लेकिन राष्ट्रपति के चुनाव में देखा जा सकता है कि जाति पाति की राजनीति में कितना जहरीला असर है। इसके बिना सत्ता की सीढ़ियां चढ़ना आसान नहीं।
इनका दलित,उनका दलित!आखिर दलित किस सोपान पर पहुँचे कि वह सामान्य हो जाय।अम्बेडकर ब्राह्मणी से शादी करने के पश्चात भी दलित रहे और मीरा कुमार कोईरी(OBC) से शादी से शादी करके भी दलित हैं।

अंत मे बकौल सुधा राजे -
"मीरा कुमार ने जूते छीले ??चमड़ा पकाया ?शौच उठाया ?गोबर कूड़ा साफ किया ?गली झाड़ी ?कभी नीचे धरती पर बैठना पड़ा ?कभी दरवाजे पर बाहर रहना पड़ा ?कभी किसी ने जूठन दी उतरन दी ?कभी अस्पृश्यता के कारण अलग बैठना रहना पड़ा ?

तो वे दलित कैसे हो गयीं ??
दलित माने डाऊन ट्रोडन !!और गाड़ियों की फौज के बीच कोई कोई दलित कैसे रह गया ,,,,,,,,,यानि अगली सदी से अगली सदी के बादशाह तक दलित ही रहेगे??"

यानी इस कैटेगरी के अन्य इसी स्तर के लोग किस पद पर पहुँचने के बाद सामान्य जाति के हिस्सा बन सकेंगे।
आखिर कब तक?

डॉ मनोज कुमार सिंह

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