दोहे मनोज के...
मोदी की उपलब्धि है,बोल रहे रोबोट।
मन्दिर मन्दिर घुम रहे,पप्पू पाने वोट।।
जातिवादियों के लिए,हुई सबक की बात।
उल्टा चाँटा जड़ दिया,आज जिन्हें गुजरात।।
गृह त्यागी के साथ में ,तुलना है बेकार।
इक है मिट्टी में पला,इक सुविधा के द्वार।।
राहुल के संग मिलकर,हार गए विघ्नेश।
हार्दिक हों जिग्नेश हों ,या नेता अल्पेश।।
हार'दिक इस देश का,बहुत बड़ा है रोग।
है सुझाव फिर से करे,सीडी का उद्योग।।
जनादेश का भी करो,कुछ तो तू सम्मान।
क्यों मशीन पर दोष मढ़,करते हो अपमान।।
मणिशंकर ने मार दी,काँगरेस की रेड़।
राजनीति में रोपकर,'नीच' नाम का पेड़।।
जीत आखिरी जीत है,हार आखिरी हार।
एक वोट से थी गिरी,कभी अटल सरकार।।
पहले यूपी से हटे,माया औ' अखिलेश।
अब होगा काँग्रेस से,मुक्त हमारा देश।।
राजनीति कर जाति की,फिर भी हुआ न पास।
है विकास पागल नहीं,पागल किया विकास।।
छीछालेदर कर रहे,क्यों अपनी हर बार।
हार गए तो मान लो,अब तो अपनी हार।।
सत्तर वर्षों से रही,काँग्रेसी ये रीति।
पचा नहीं पाती कभी,दुसरों की ये जीत।।
अजब आज का दौर है,गजब वक्त का फेर।
गदहे को घोड़ा कहे,और स्यार को शेर।।
जयचंदों की है खड़ी,देखी लंबी फौज।
जाति,धर्म का लाभ ले,काट रही है मौज।।
जिनको जूते मार कर ,जन ने दिया नकार।
फिर भी नहीं स्वीकारते,मुख से अपनी हार।।
ये कैसा है आकलन,ये कैसा आचार।
हार बताते जीत को,और जीत को हार।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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