वंदेमातरम्!मित्रो!एक गीतिका समर्पित है।
बात हर दिन हवाई चल रही है।
तीरगी में लड़ाई चल रही है।
कुछ तो पढ़कर भी आतंकी बने हैं,
जाने कैसी पढ़ाई चल रही है।
सत्तर साल से रुकी ही नहीं,
आज भी महँगाई चल रही है।
गड़े मुर्दे यहाँ चिल्ला रहे हैं,
सियासत में खुदाई चल रही है।
नहीं ही पाटने का हश्र है कि,
जाति,मज़हब की खाई चल रही है।
आज बाज़ार के इस दौर में अब,
अनावृत बेहयाई चल रही है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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