Tuesday, February 6, 2018

गीतिका

वन्दे मातरम्! मित्रो!एक गीतिका समर्पित है।स्नेह अपेक्षित है।

शब्द प्रवाहित जल जैसे हैं।
भाव शिखा के फल जैसे हैं।

शब्द ब्रह्म की महिमा समझो,
सब प्रश्नों के हल जैसे हैं।

जब विचार से टकराते तो,
ध्वनिमंत्र कल कल जैसे हैं।

बहुत बड़े हैं ये बहुरुपिये,
फैले ये जल थल जैसे हैं।

बहुत सख्त पत्थर जैसे कुछ,
कुछ तो मधुर कमल जैसे हैं।

पानी में भी आग लगा दें,
शब्द ये बड़वानल जैसे हैं।

जो रखते हैं शब्द संपदा,
उनके सैनिक दल जैसे हैं।

डॉ मनोज कुमार सिंह

No comments:

Post a Comment