कलम की रोशनी में,जी रहा हूँ।
इस तरह जिंदगी में,जी रहा हूँ।
जबसे देखा है उसने मुस्कुराकर,
मैं आँखों की नमी में, जी रहा हूँ।
मुझे बेचैन करते हैं, दिखावे ,
इसलिए सादगी में,जी रहा हूँ।
सदा हँसता ,लिए आँखों मे पानी,
मैं जोकर ,कामदी में,जी रहा हूँ।
कहीं मैं बुझ न जाऊँ,तीलियों-सा,
चिलम की धौंकनी में,जी रहा हूँ।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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