वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।अच्छा लगे तो अपनी अमूल्य टिप्पणी जरूर दीजियेगा।
हो गई कैसी सियासी सोच,बंजर की तरह।
समझती है आदमी को,ढोर डंगर की तरह।
खा गईं हिस्से की सारी,रोटियाँ ये कुर्सियाँ,
आज भी दिखता है इन्सां,अस्थि पंजर की तरह।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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