वंदेमातरम्।मित्रो!एक युगबोध से भरी कुण्डलिया हाज़िर है।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
मुख पर झूठी वेदना,दिल मे बैठा चोर।
मरी हुई संवेदना,दिखती है चहुँओर।।
दिखती है चहुँओर, किसे मैं अपना बोलूँ।
दिल के गम को आज,कहाँ, कब ,कैसे खोलूँ।
सुन मनोज कविराय,सहोगे जितना तुम दुःख।
बनकर तेरा दोस्त,निखारेगा तेरा मुख।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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