वंदेमातरम्!मित्रो!एक गीतिका समर्पित है।
दिखा सके न जो,...हकीक़त क्या है।
ऐसे आईनों की,.....जरूरत क्या है।
खुद खड़ी हो अदालत,..जब कटघरे में,
अब किससे कहें,..मेरी शिकायत क्या है।
कैसे कैसे बैठे हैं,.....इन कुर्सियों पर,
जिन्हें मालूम नहीं,..सही-गलत क्या है।
जिसके दिल मे महज,...नफरत ही बैठी,
कौन बताए उसे ......कि मुहब्बत क्या है।
वतन जो बाँटने को,.........तैयार बैठे हैं,
उन्हें पता ही नहीं,..मायने शहादत क्या है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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