वंदेमातरम्!मित्रो!एक 'गीतिका' प्रस्तुत है।आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।
कवि का मन चंचल होता है।
भावों का अंचल होता है।
अधरों पर मुस्कान दिखे,पर,
आँखों में कुछ जल होता है।
नदी,समंदर नप जाते हैं,
कवि का हृदय अतल होता है।
सत्य,शिव,सुंदर चिंतन का,
अद्भुत इक जंगल होता है।
कवि वहीं, दुनिया के दुःख से,
भीतर से विह्वल होता है।
जिसकी आहों से,दुनिया में,
दिल का तंतु विकल होता है।
प्रेम पगे सुरभित भावों से,
शब्द शब्द निर्मल होता है।
उक्ति वक्र वैचित्र्य कहे पर,
कवि का हृदय सरल होता है।
कविता प्रतिदिन पढ़ो हृदय से,
अवसादों का हल होता है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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