वन्दे मातरम्!मित्रो! युगबोध से लबरेज तीन खुरदुरे दोहे हाजिर हैं। मैं चाहता हूँ कि आप मेरी रचनाओं को अगर अच्छी लगें तो जरुर पढ़ें और स्नेह दीजिए । मेरे साथ कुछ लोग ऐसे भी जुड़े हैं,जो मेरे परिचित हैं और मुझे बहुत प्यार करते है जिनके संबंध कविता को लेकर नहीं है। फिर भी वे मेरे आत्मीय हैं,लेकिन कुछ मेरे काव्य व्यक्तित्व के चलते जुड़े हैं उनका मैं हृदय से आभारी हूँ जो मेरी रचनाओं पर टिप्पणी करके मेरा हौसला अफजाई करते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो मेरी रचनाओं को शेयर करने के बजाय कॉपी पेस्ट करके अपना नाम डाल देते हैं। ऐसे काफी लोगों को मैंने ब्लॉक कर दिया है।
मित्रो!काव्यकर्म मेरा पैशन है,पैत्रिक संस्कार है और साथ में आपका प्यार है।
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फेसबुक पर कवियों की,ऐसी लगी कतार।
मोती के बाजार में, ज्यों मछली-व्यापार।।1
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तुम मुझको तुलसी कहो,तुझको कहूँ कबीर।
आओ मिलकर बाँट लें,बौनेपन की पीर।।2
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वाह वाह की लत लगी,बस ताली की चाह।
मंचों की कविता बनीं,सबसे बड़ी गवाह।।3
डॉ मनोज कुमार सिंह
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