वन्दे मातरम्!मित्रो! थोड़ा खुरदुरा मगर सच की पड़ताल करता हुआ एक दोहा और एक कुण्डलिया सादर प्रस्तुत है। टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
दोहा
भ्रम पैदा करते सदा,फेसबुकीया मित्र।
उनको रचना चाहिए,या उन्मादक चित्र।।
कुण्डलिया
उन्मादक तस्वीर पर,लाइक,शब्द हजार।
पर रचना पर टिप्पणी,केवल दो या चार।
केवल दो या चार,समय कितना बदला है।
गर्हित हुए विचार,भला ये कौन बला है।
सुन मनोज कविराय,बने रह कविता साधक।
ऐसा कर कुछ काम,मिटे चिंतन उन्मादक।।
(उन्मादक शब्द का प्रयोग अश्लीलता के अर्थ में किया गया है।)
डॉ मनोज कुमार सिंह
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